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पुनि श्री अमोलक अरिजी+ पर बनवानव-
पारो
सामाइमाइयाइ इकारस भंगाई अहिजह २ ता बहुपडिपुण्णाइ दुवालसवासाई सामण्ण परियः पाउणिता मासियाए सलेहणाए अप्पाण झूसित्ता सद्धि भत्ताई असं गाए छदेता आलाइय पडिकते उद्धरिय सल्ले समाहिपत्ते अणुपुरवेणं कालगए ॥ १८५ ॥ तएणं थे। भगवंता ! मेहं अणगारं आणुपुत्रवेणं कालंगयं पासंति १ सा परिजिन्यायरिय काउसम्म करिति २ मेहस्स अणगारस्त आयार भंडगं गिति २ ता विउलाओ पन्चयाओ सगियं पचोरुहद, जेगाव गुणासेलए पेइए जेण:मेव समणे भगवं महावीर तेणामेव उवागच्छइ २ त्ता समणं भग महापार वह मंसइ २ चा एवं यासी- एवं खलु देवाणुप्पियाणं मग स्थपिरों की पास से अपारह अंग का पठन कर, पारर वर्ष प. माधुराना पार एकपास की संखर से बात के तकर,सठ भक्त अनशन छेद कर,अंतसका स निकालकर समापि fat सेल कोहरा ॥ १८५ ॥ मेघ अनगार को काल इश मानकर स्वपिन भगते निर्वाण कायसग किया. घनगार केस पात्र वगैरहमपारण लेकर विपुल पर्वत से बना नीच उतरे और जहां श्रमण गगन महावीर स्वामी विराजमान ये यहां आय. श्रयण भगान-पहावीर शायीको बदना नमस्कार कर ऐमा बोछे अहो देवानुमिय! आप का शिष्य प्रकृति का महिर बार
...नया-राजाहादुर ताला सुखदरसमजी व्यासापमादनी.
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