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. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
....... .... ५..लास संगहि सज्यिवउिए।तएणं तव मेह! सरीरगंसि घेयणा पाउब्भूया उज्जला जाब वाहवकंतीएयावि विहरति ॥ तएणं तुम मेहा! तं उज्जलं जाव दुरहियासं तिण्णिराइंदियाइं वेषणं वेएमाणे विहरित्ता एगवास सयं परमाउयं पालइत्ता इहेव जंबुद्दीवे २ भारहवासे रायगिहे पयरे सेणियरपणो धारिणीए देशए कुच्छिसि कुमारत्ताए पञ्चाया ॥ १६७ ॥ तएणं तुम मेहा! अणुपुबेणं गब्भवासाओ पिक्वते समाणे उम्मुक्कवालभावे जोधणगमणुपत्ते ममअतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ
अणमारियं पव्वइए ॥ १६ ॥ तंजइ ताव तुमे मेहा ! लिरिक्खजोणिय भाव हुवा तू पृथ्वी पर गिरपडा. अहो मेघ ! उप सभ्य तेरे अंग में उज्वल यावन् दाहवाली वक्र वेदना उत्पन्न हुई. अहा मेव ! ऐमी वेदना तीन रात्रि दिन तक शोमवकर एक सो वर्ष का उत्कृष्ट आयुष्य पालकर यहां जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र के राजगह नगर में श्रेणिक राजा की धारणि देवी की की कुमारपने उत्पन्न हुवा ॥ १६७ ॥ अहो मेघ ! अनुरुप से गर्भधान में से नीकलकर बालभाव मे मुक्त होकर योवन भाव को जब प्राप्त हवा तब मेरी पास मुंडित होकर गश्वास से साधुपना तैने अंगीकार किया. ॥१६८ ॥ अहो मेघ! तिर्यंच के भव में जब तेरे को सम्यक्त्व की प्राप्ति भी नहीं हुई थी उस
• पकाशक-राजाबः लाला मुखदेवमहायजी वालSES.
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