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________________ सूत्र अर्थ 4- अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी एवं महालियंचणं हिं रयणी मेहकुमारे जोसंचाएइ स्वणमत्रि अच्छिणिमीलित्तए ॥ १३३ ॥ तएगं तस्स मेहरसकुमार अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुपज्जित्था - एवं खलु अहं सेणिएरणोपुत्ते धारिणीदेवीए अत्तए मेहे जात्र सत्रणथाए, तं जम्हाणं अहं आगार मज्झावसामि तयाणं मम समणाणिग्गंथा आढायंति परिजाणंतिसक्कारेति सम्मा ति अट्ठाइहऊति परिणाई कारणाई वाकारणाई आइक्खंति, इट्ठाहिं ताहिं आलर्वेति संलवंति, जप्पभिचणं अहं मुंडे भविता आगाराओअणगारियं पव्वइए तप्पभिचणं ममं समणाणिग्गंथा णो आढाइंति जात्र णो संलवंति अदुतरंचणं मम आंखों क्षणभर भी मीली नहीं. अर्थात् क्षणभर भी उस को निद्रा आसकी नहीं ॥ १३३ ॥ उस समय बेधकुमार को ऐसा अध्यक्षमाय यावत् हुवा कि मैं श्रेणिक राजा का पुत्र, धारणी देवी का आत्मज पावत् डम्बर पुष्प जैसे सुनने को दुर्लभ हूं. और भी जब मैं गृहवास में था तब श्रमण निर्ग्रन्थों मुझे आदर { करते थे, अच्छा जानते थे, सत्कार करते थे, सम्मान करते थे, अर्थ हेतु प्रश्न कारण व व्याकरण कहते थे. इष्ट कांत वचनों से मुझे वोलाते थे, व मेरी साथ संलाप करते थे. परंतु जिस दिन से मैं मुंडित होकर गृह{वास से साधुपना अंगीकार कीया है उस दिन से श्रमण निर्ग्रन्थ मेरा आदर नहीं करते हैं यावद मेरी साथ बचनों वार्तालाप भी नहीं करते हैं और भी पढे माधुओं आज राधि में वाचना पृच्छा यावत् Jain Education International For Personal & Private Use Only ● प्रकाशक - राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्यामलदजासी ११४ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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