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११ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
॥ १२४ ॥ तएणं से मेहेकुमारे रायगिहस्सणंयरस्स मज्झमच्झेणं णिगन्छइ. जेणेष गुणसिलए चइए तेणेव उवागच्छइ२त्ता पुरिससहस्सवहणीओ सीयाओ पञ्चारुहइ ॥ १२५ ॥ तएणं तस्स मेहस्सकुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं पुरओ .... कटु जेणामेव समणं भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ २ त्ता, समणं भगवं. महावीरं तिक्खत्तो आयाहिणं पयाहिणं करे २ करेइत्ता बंदइ. णमंसइत्ता. एवं वयासी-एसणं देवाणुप्पिया ! मेहेकुमारे अम्हं एगेपुत्ते इटुं कंते पिए .मणुणे
मणामे जाव जीविऊसासएहिययणंदिजणए, ऊंबरपुप्फपिव दुल्लहे सवणयाए किं होवो. यों कहते हुए वारंवार मंगल जय २ शब्दोच्चार करने लगे ॥ १२४ ॥ तत्पश्चात् मेषकुमार राजगृह नगर में से नीकलकर गुणशील उद्यान में आये और पुरुष सहस्र वाहिनी पालखी से नीचे उतरे. ॥ १२५ ॥ वहां मेघकुमार के मालपिता मेघकुमार को आगे करके श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास गये और श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को तीनवार आवर्त प्रदाक्षिणा करके वंदना, नमस्कार कर ऐसा बोले-अहो देवानप्रिय ! यह मेघकुमार हम को एक ही 'पुत्र सुनने को इष्ट कान्तप्रिय, मन मनको आनंद कर्ता यावत् जीव को श्वासोश्वास समान हृदय को आनंद कारी व उम्बर पुष्प. समान
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी .
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