SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र 49% kakak bkk i lank IEL-Wb&b *** वत्त, बद्धमाणग भदासण, कलस, मध्छ, दप्पण, जाव वहवे अत्यत्थिया जाव तर्हि इट्ठाहिं जाव अणवरयं अभिणंदताय अभिथुणंताय एवं वयासी-जयजयणंदा, जयजयः भदा जयणंदा भदंते, अजियं जिगार्हि-इदियाहिं, जियंचपालेहि-समणधम्मं, जियविग्घोवियवसांहे तदेवसिाडमझणि शाहि, रागदोसमल्लेतवेणविधणिय, बद्धकक्खे मद्दाहिय अट्ठकम्म सतू ज्झाणेण, उत्तमेणं सुकंणं अप्पमते-पावय, वितिमर मणुत्तरं केवलणाणं गच्छओमोक्ख परमंपयं सासयंच अचलं, हंतापरिसह चमूणं, अभीओ परिसहोवसग्गाणं धम्मतअविग्धं वओ तिकटु, पुणो २ मंगल जय २ सदं पउजंति ७ मत्य व ८ दर्पण. इस तहर यावत् अर्थ की सिद्धि करने वाले यावत् इष्ट शब्दों से निरंतर स्तुति करते है हुवे ऐसे बोलने लगे जय रामे, विजय होवे, अजिते जो इन्द्रिय धर्म उसे जीतो, जीता हुवा श्रमण चर्म का पालन करो, देव ब सिद्धि की मध्य में रहो तप से रागद्वेष रूप. मैल दूर करो, धैर्य धारण करो, अष्ट कर्म रूप शत्रु का मर्दन करो, उत्तम शुक्ल ध्यान से अप्रमाद अवस्था में प्रवर्ती, ज्ञानावरणीय रूप पडल से जो अंधकार होरहा है उसे केवल ज्ञान रूप सूर्य से प्रकाश करो, शाश्वत, अचल, ऐसे मोक्ष पद प्राप्त करो, परिषह रूप सेना का नाश करो, परिषद उपसर्ग में निर्भय बनो, तुम धर्मार्थ विघ्न रहित 942 उत्क्षिप्त ( मेयकुमार) का प्रथम For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy