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सत्र
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षष्टमांग-माता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
सेणियरम्यं करयल मंजलिकटु एवं यथासी-संदिसहणं देवाणुप्पिया ! जमएकरणिज्ज ॥ ११ ॥ तएणं से सेणियराया कासवयं एवं व्यासी-गच्छाहिगं तुम देवाणुप्पिया! सुरभिणागंधोदएणं णिके हत्थेपाएपक्खाले हिं, सेयाए चउप्फलाए पात्तीए मुहबंधेत्ता मेहकुमारस्स चउरंगुलवज णिक्खमणपउग्गे अग्गकेसे कप्पेहिं ॥ ११५ ॥ तएणं कासवेए सेणिएणं रण्णा एवंवुत्ते समाणे हट्ठतुजाव पडिसुणतिरसुरभिणागंधोदएणं हत्ये पाए पक्खालेत्ति २. सद्धंवत्थेणं महवंधति ॥ परेणं जत्तेणं मेहस्सकमारस्स चउरं.
गुलबजे णिक्खमणपाउग्गे अग्गकसे कप्पति ॥ ११६ ॥ तएणं तस्स मेहकुमारस्स राजा की पास आकर श्रेणिक राजा को हस्तद्वय जोडकर ऐसा बोले अहो देवानप्रिय! जो मुझे करने योग्य होवे सो यत लावो? ॥११४॥ तब श्रेणिक राजा काश्यप [ नापित ] को ऐसा बोले-अहो देवानमिव ! तू यहां से जा और सुगंधित पानी से हाथ पांव का प्रक्षालन कर श्वेत वस्त्र के चार पडवाले वस्त्र से मुख वांधकर मेघकुमार के मस्तक के केश चार अंगुल छोडकर शेष सब केश काटो ॥११॥ जब राजाने ऐसा कहा तब वह काश्यप बहुत हृष्ट तुष्ट होकर यावत् सब आज्ञा सविनय मुनी और सुगंधित पानी से हस्त पांवका प्रक्षालन कीया,शुद्ध वस्त्रसे मुख बांधा और बहुत यत्ना पूर्वक मेघकुमार के मस्तक के चार अंगुल छोड. कर बाकी के अग्रकेश काटे ॥ ११६ ॥ उस समय मेघकुमार की माताने इस समान श्वेत वस्त्र में अग्रकेश
480 उत्क्षिप्त (मेघकुमार) का प्रथम अध्ययन 428
अर्थ
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