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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
तिण्णियसयसहस्साई गहाय दोहि सयसहस्सेहिं कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च उवणेह, सयसहस्सेणं कासवयं सद्दावेह ॥११२॥ तएणं कोडुषियपुरिसा सेणिएणं रण्णाएवं वुत्ता समाणा हतुट्ठा सिरिघराओ तिणि सयसहस्सइ गहाय कुत्तियावणाओ, दोहिं सयसहस्सेहिं स्यहरणंच पडिगहंच वर्णेति, सयसहस्सेणं कासवयं सहावेलि ॥ ११३ ॥ तएणं से कासवे कोडुवियपुरिसेहिं सदाविए समाणा हट्टतुट्ठा जाव हियए ण्हाए कयवलिकम्मे कयकोऊअमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगलाई क्त्थाई पवराई
परिहिए अप्पमहग्घभरणालंकियसरीरे जेणवसिणिएराया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता में से तीनलाख सुवर्ण महोर लेकर जावो जिसमें से दोलावसे कृत्रिक वणिक की दुकानसे रजोहरण व पात्र लावो और एक लाख से नापित बोलावो ॥११२ ।। कौटुम्विक पुरुष श्रेणिक राजा की पास से ऐसा
सुनकर हृष्ट तुष्ट हुवे लक्ष्मी भंडारमें से तीन लक्ष मोनैये लेकर दोलक्ष सोनये से कुत्रिक वणिक की दुकानसे घरजोहरण व पात्रे लीये और एकलक्ष सोनये नापित कोदे बुलवाया.॥११३॥ वह नापित राजाके कौटुम्बिक
पुरुषों बोलाने से हृष्ट तुष्ट हुवा यावत् स्नान कीया, कुल्ले कीये, तीलक मसादिक कीये, शुद्ध राज्यसभा में प्रवेश करने योग्य श्रेष्ण, मांगलिक वस्त्र पहिने, अल्प भार बहुन मूल्य वाले आभरण पहिने, पीछे श्रेणिक
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादी .
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