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42 षष्टमांग ज्ञाताधर्म कथा का प्रथम श्रुतस्स्कन्ध
चेव मेहं कुमारं एवं वयासी-इच्छामोताव जाया ! एगदिवसमवि रायसिरि पासित्तए ? ॥१०६ ॥ तएणं से मेहेकुमरे अम्मापियरं मणुवमाणे तुसिणीएसंचिट्ठा ॥ १.७॥ तएणं से सेणिएराया कोडुंबिय पुरिसे सदावेइ, एवं वयासी-खिप्पामेव भी देवाणुप्पिया! मेहस्सकुमारस्स महत्थं महरिहं महंग्धं, विउलं रायाभिसेयं उबटुवेह॥ तएणं कोडुंबिय पुरिसा जाब तेवितहेव उवट्ठवेइ २ ॥ १०८ ॥ तएणं से सणिएराया बहुहिं ममणायग, दंडणायगेहिय जाव संपरिबुडे मेहंकुमारं अट्ठसएणं
सोवाणियाणं कलसाणे, एवं रुप्पमयाणंकलसाणं, मणिमयाणकलसाणं, सुवष्ण रहित मेशकुमार को ऐसाहा अहोपुत्र एकदिन तुम राज्यलक्ष्मी भोगवता हुवा हमदेखना चाहते हैं अर्थात् एकदिन तू राजगादीपर बैठ ॥१०६॥ उससमय मेघकुमार मातपिता का मन रखने को मौन रहा ॥१०७॥ उस समय श्रेणिक राजा कौडाम्बक पुरुषों को बोलाकर ऐसा बोले अहो देवासुप्रिय ! मघकुमार को बहुत द्रव्यवाला, बहुत योग्य व महy ऐसा बहा राज्याभिषेक करो. कौटुम्बिक पुरुषोंने भी वैसा ही कीया ॥१०८॥ अब बहुत गणनायक दंडक नायक से यावत् परवरे हुबे श्रेणिक राजाने मेघकुमार को एक सो आठ मुवर्ण के कलश, एक सो आव चांदी के कलश, एक सो आठ मणि के कलश, एक सो आट सोने चांदी के कलश,
48 उत्क्षिप्त (मेषकुमार) का प्रथम अध्ययन Net
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