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________________ 48. अनवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - एसणं जाया णिग्गेथे पावषणे-सच्चे अणुत्तरे पुणरवि तेचव जाव तओपच्छा भुत्तभोई समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पन्धहस्ससि ॥ एवं खलु अम्मयाओ जिग्गंथे पावयणे कीविणाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपडिबहाणं, परलोयाणिप्पिवासाणं, दुरणुचरे पायय जणस्स; णो चेवणं धीरस्स, एत्य किं दुक्करं करणयाए, तं इच्छामिणं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भण्णुण्णाए समाणे समणस्स भयवओ जाव पन्वइत्तए ॥ ११५ ॥ तएणं तं महंकुमारं अम्मापियरो. जाहे णो संचाएइ बहुहिं विसयाणुलोभाहिय, विसय पडिकुलाहिय आघवणाहिय पण्णवणाहिय सण्णवणाहिय, विण्णव पाहिय, आघवितएवा, पण्णवितएवा, सण्णवितएवा, विणवीतएवा ताहे अकामकाई श्रयण भगवंत महावीर स्वामी की पास दीक्षा अंगीकार करना परंतु, अहो मातपिता ! निर्ग्रन्य के प्रवचन , क्लीव [ नपुंसक ] कायर , नीच पुरुष, इस लोक के प्रेम में बंधाये हवे,परलोककी वाच्छा रहित पुर पामरजनों को आचरने में दुष्कर हैं परंतु धीर वीर पुरुषों को कुच्छ भी दुष्कर नहीं है. इसलिये अहो मात तात! मैं आपकी आज्ञा होते श्रमण भगवतं महावीर स्वामी की पास दीक्षित होना चाहता हूँ॥१०५॥ जब रमेघ कुमारको विषयानुकूल व विषय प्रतिकूल वचनोंगे समझानेको उनके मातपिता.समर्थ हुए नहीं तब इच्छा .प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. www.iainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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