SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३ मुनिसम्मेलनके शुभमुहूर्तके दिनका स्वागतका व्याख्यान। श्री वीराय नमः । "आसन्न उपकारी चरम तीर्थकर श्री वीर परमात्माको और यहाँ पर विराजित तीर्थस्वरूप चतुर्विध श्रीसंघको भावपूर्वक प्रणाम करके, हमारे राजनगरमें समस्त श्रीसंघके प्रार्थना युक्त निमंत्रणसे कृपा करके दूर दूरके प्रदेशों से उग्र विहार करके पधारे हुए पूज्य आचार्य महाराज, पूज्य उपाध्यायजी महाराज, आदि पूज्य मुनिमहाराजोंका मैं, यहाँके समस्त श्रीसंघकी ओरसे, हृदयसे स्वागत करते हुए आनन्द प्रदर्शित करता हूँ । ____ "प्रबल पुण्योदयसे प्राप्त हो ऐसे इस महान् ऐतिहासिक प्रसंगका लाभ हमारे नगरके श्रीसंघको प्राप्त होनेसे हम हमारा अहोभाग्य मानते हैं। "निमंत्रण पत्रिकामें दर्शित अनिच्छनीय वातावरणके जो जो निमित्त हों, उन सबका विचार करके शुद्ध शांतिमय वातावरण पैदा करनेकी कोशिश करनेकी आप सर्व पूज्योंसे मेरी प्रार्थना है। ___ "आपके इस पवित्र प्रयत्नमें आप सभी पूर्ण सफल हों, जिससे अपना महान् एवं गौरवयुक्त श्रीजनशासन अधिक गौरवयुक्त हो, और यह प्रसंग एक अनूठा ऐतिहासिक प्रकरण बना रहे। “मुनिसम्मेलनके कार्यक्रममें आपको इससे अधिक कहनेका मुझे अधिकार नहीं है। फिर भी अपने त्याग प्रधान वीतरागशासनकी उत्कृष्ट आदर्श साधुसंस्था, इस सम्मेलनके प्रयत्नसे अधिकाधिक उत्कृष्ट हो, और जैन समाजभी ऐसी आदर्श माधुसं Jination interna For Personal Private Use Only
SR No.600251
Book TitleAkhil Bharatiya Jain Shwetambar Muni Sammelanne Sarv Sammati se Pattak rup me Kiye Hue Nirnay Vikram Samvat 1990 Year 1934
Original Sutra AuthorShree Sangh Rajnagar
Author
PublisherShree Sangh Rajnagar
Publication Year1934
Total Pages28
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tithi, Devdravya, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy