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२ मुनिमहाराजोंको भेजा हुआ निमंत्रण ।
यस्य ज्ञानमनंतवस्तुविषयं यः पूज्यते दैवतैर्नित्यं यस्य वचो न दुर्नयकृतैः कोलाहलै प्यते ॥ | रागद्वेषमुखद्विषां च परिषत् क्षिप्ता क्षणायेन सा, स श्रीवीरविभुर्विधूतकलुषां बुद्धिं विधत्तां मम ॥१॥
श्री वीराय नमः । | प. पू. अनेकगुणगणालंकृत श्रीमद् ,
जोग श्री राजनगर से लि० श्रमणोपासक श्री संघसमस्तकी १००८ बार वंदना स्वीकृत हो। अपरं च हालमें कितनेक समय से अपनेमें कितनेक स्थानमें कितनेक अंशमें अनिच्छनीय वातावरण हुआ है। अपने अविच्छिन्न प्रभावशाली त्रिकालाबाधित श्री वीतरागके शासनमें इतना भी उचित नहीं। जिससे शांतिके लिये एक मुनिसम्मेलनकी परम आवश्यकता है, ऐसी, बहुत अरसेसे अपने मुनिमहाराजोंमें चर्चा होने से उन्होंकी इच्छाके अनुरूप हम श्रीसंघने श्रीजैन श्वेतांचर (मूर्तिपूजक) मुनिओंका सम्मेलन यहाँ भरनेका निश्चित किया है । उसका शुभ मुहूर्त वीर सं. २४६० के फाल्गुन कृष्णा (चैत्रकृष्णा) ३ रविवार, ता. ४-३-१९३४
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