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________________ ५ श्री मुमिसम्मेलनके निर्णय श्री चतुर्विधसंघको पढकर सुनाये उस समयका व्याख्यान ॥ श्री वीराय नमः। सर्वलब्धिसंपन्नाय श्री गौतमस्वामिने नमो नमः । REEEEEEEEEX परमतारक श्रीतीर्थंकर देवोंसे नमस्कृत चतुर्विध श्रीसंघमें अग्रिमपदस्थ, शासनधूराधारी, परमपूज्य, आचार्यदेवादि श्री मुनिपुंगवगण, पूज्य श्री साध्वीजीमहाराज, श्राद्धगुणविभूषित भाइओ तथा बहिनो । ____ आप-श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघके दर्शन करके मैं कृतार्थ हुआ हूं। आजका दिन श्रीजनशासनके इतिहासमें एक पुण्य स्मारक के रूपमें चिरस्मरणीय रहेगा। पिछले कितनेक वर्षांसे अपने जैनसमाजमें कितनेक अंशमें अनिच्छनीय वातावरण उत्पन्न हुआ था । इतनाभी अपने अविच्छिन्न प्रभावशाली त्रिकालाबाधित श्रीवीतरागके शाशनमें शोभास्पद नहीं है । और यदि पूज्य श्रीमुनिसंघ एकत्रित होकर चर्चास्पद प्रश्नोंके निर्णय जाहिर करे तो वह वातावरण दूर किया जा सकता है, ऐसा अपने समाजके विचारशील मुनिवर्यों व गृहस्थोंको प्रतीत होनेसे भिन्न भिन्न स्थानोंमें चातुर्मासके लिये विराजते हुए पूज्य आचार्य वगैरह मुनिवों के साथ (गृहस्थोंके मारफत ) आवश्यकीय विचार विनिमय किया गया था. और उन्होंने अपना सम्मेलन भरना निश्चित किया था। Jain Education in For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org
SR No.600251
Book TitleAkhil Bharatiya Jain Shwetambar Muni Sammelanne Sarv Sammati se Pattak rup me Kiye Hue Nirnay Vikram Samvat 1990 Year 1934
Original Sutra AuthorShree Sangh Rajnagar
Author
PublisherShree Sangh Rajnagar
Publication Year1934
Total Pages28
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tithi, Devdravya, & History
File Size4 MB
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