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________________ ॥७॥ अगीयार# (पुष्प) स्नात्र सेवंत्रा चमेली मोगरा गुलाब जुई ए जातना फुलो कलश भरवाना पाणीमा नाखवा. 'नमोऽर्हत्' कही. अधिवासितं सुमन्त्रः, सुमनः किञ्जल्कराजितं तोयम् । तीर्थजलादि-सुपृक्तं, कलशान्मुक्त पततु बिम्बे ॥ १ ॥ सुगन्ध-परिपुष्पौघे-स्तीर्थोदकेन संयुतैः। भावना-भव्यसन्दोहैः, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥ २ ॥ "ॐ हाँ ह्रीं परम अर्हते पुष्पौधैः स्नापयामीति म्वाहा" ॥ इति एकादशस्नात्रम् ॥ . बारमु (गन्ध) स्नात्र १ केसर २ कपूर ३ कस्तूरी ४ अगर ५ चंदन ए घसी जलमां नाखी 'नमोऽहत्' कहीगन्धाङ्गस्नानिकया, सन्मृष्टं तदुदकस्य धाराभिः। स्नपयामि जैनबिम्ब, कर्मोधच्छित्तये शिवदम् ॥१॥ कुंकुमादिकरिश्च, मृगमदेन संयुतः। अगरश्चन्दनमित्रैः, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥ २ ॥ .. "ॐ हाँ ही परम अहते गन्धेन स्नापयामीति स्वाहा"। ।। इति द्वादशं स्नात्रम् ॥ ॥७ ॥ Jain Education international For Personal & Private Use Only
SR No.600248
Book TitleAdhar Abhishek Vidhi
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1987
Total Pages26
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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