________________ अन्तकृद्दशाङ्गे // 32 // राहेति चरिमउस्सासणीसासेहिं सिद्धा बुद्धा। अह य वासा आदी एक्कोत्तरियाए जाव सत्तरस / एसो खलु परिताओ सेणियभजाण णायव्यो॥१॥एवं खलु जंबू! समणेणं भगवता महावीरेणं आदिगरेणं जाव संपत्तेणं | अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमढे पन्नत्ते / अंगं सम्मत्तं / (सू० 26) अंतगडदसाणं अंगस्स एगो सुयखंधो अट्ठ वग्गा अहसु चेव दिवसेसु उद्दिसिजंति, तत्थ पढमबितियवग्गे दस 2 उद्देसगा तइयवग्गे तेरस उद्देसगा चउत्थपंचमवग्गे दस 2 उद्देसया छट्ठवग्गे सोलस उद्देसगा सत्तमवग्गे तेरस उद्देसगा अहमवग्गे दस उद्देसगा सेसं जहा नायाधम्मकहाणं // (सू० 27) // अंतगडदसङ्गसुत्तमष्टममङ्गं समाप्तमिति // ग्रं० 790 // ससु उद्दिसिसम्मत्तं। ( सहावरिणं आविस एसो खल 8 वर्ग महासेन कृष्णाध्य. 10 आचाम्लवर्धमानवर्ण. उद्देशादि सू० 27 1 अथानन्तरोदितानां काल्यादिसाध्वीनां पर्यायपरिमाणप्रतिपादनायाह-'अट्ट य' गाहा, अष्ट च वर्षाण्यादिं कृत्वा एकोत्तरिकया-एकोत्तरतया क्रमेण यावत् सप्तदश तावच्छेणिकभार्याणां पर्याय इति // यदिह न व्याख्यातं तज्ज्ञाताधर्मकथाविवरणादवसेयम् / / एवं च समाप्तमन्तकदशाविवरणमिति // अनन्तरसपर्यये जिनवरोदिते शासने, यकेह समयानुगा गमनिका किल प्रोच्यते / गमान्तरमुपैति सा तदपि यरस्यां कृतावरूढगमशोधनं ननु विधीयतां सर्वतः // 1 // इत्यन्तकृद्दशावृत्तिः सम्पूर्णा // | // 32 // dain Educato For Personal & Private Use Only O nelibrary.org