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________________ प्रस्तावना. सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तिः (मल०) 45454444444* 'जाव राजा जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए' इति, अत्र यावच्छब्दादिदमौपपातिकग्रन्थोक्तं द्रष्टव्यं-'तए| णं सा महइमहालिया परिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धर्म सोच्चा निसम्म हहतुठा समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करित्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सुयक्खाए णं भंते ! निग्गंथे. पावयणे, नत्थि य केइ अन्ने समणे वा माहणे वा एरिसं धम्ममाइक्खित्तए, एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया, तए णं से जियसत्तू राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धर्म सुच्चा निसम्म हहतुढे जाव हयहियए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता पसिणाई पुच्छइ पुच्छित्ता अट्ठाई परियाएइ परियाइत्ता उठाए उठाइ, उठाए उहित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सुयक्खाए णं भंते ! निग्गंथे पावयणे जाव एरिस धम्ममाइक्खित्तए, एवं वइत्ता हत्थिं दुरूहइ दुरूहित्ता समणस्स भगवतो महावीरस्स| अंतियाओ माणिभद्दाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए' (सू.३५|३६-३७) इति, इदं च सकलमपि सुगम, नवरं यामेव दिशमवलम्ब्य, किमुक्तं भवति?-यतो दिशः सकाशात् प्रादुर्भूतः-1 समवसरणे समागतस्तामेव दिशं प्रतिगतः।। तेणं कालेणं तेणं समए णं समणस्स भगवतोमहावीरस्स जेडे अंतेवासी इंदभूती णामे(म) अणगारे गोतमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए बजरिसहनारायसंघयणे जाव एवं वयासी (सूत्रं २) 'ते णं कालेणं तेणं समए णं समणस्स भगवतो महावीरस्स जेढे अंतेवासी इंदभूई नामे अणगारे गोयमे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600245
Book TitleSuryapragnptisutram
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_suryapragnapti
File Size12 MB
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