SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 497
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वादशाझ्याआराधनाविराध. नाफलं | स्वरूपं च अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरिअहिंसु, इच्चेइअंदुवालसंगं गणि. पिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरिअहति, इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरिअहिस्संति । इच्चेइ दुवासंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आ- . णाए आराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं वीईवइंसु, इच्चेइअं दुवालसंग गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं वीईवयंति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्संति । इच्चेइअं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी न कयाइ न भवइ न कयाइ न भविस्सइ भुवि च भवइ अ भविस्सइ अ धुवे निअए सासए अक्खए अव्वए अवट्टिए निच्चे, से जहाना मए पंचस्थिकाए न कयाइ नासी न कयाइ नत्थि न कयाइ न भविस्सइ भुवि च भवइ अ भविस्सइ अ धुवे नियए सासए अक्खए अबए अवट्टिए निचे, एवामेव दुवालसंगे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600244
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1924
Total Pages514
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy