SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्रकृतागाधिकार अवाईणं बत्तीसाए वेणइअवाईणं तिण्हं तेसट्टाणं पासंडिअसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविजइ, सूअगडे णं परित्ता वायणा संखिजा अणुओगदारा संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखिज्जाओ निजुत्तीओसंखिज्जाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए बिइए अंगे दो सुअक्खंधा तेवीसं अज्झयणा तित्तीसं उद्देसणकाला तित्तीसं समुद्देसणकाला छत्तीसं पयसहस्साणि पयग्गेणं संखिज्जा अक्खरा अणंता गमा अणंता पजवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपन्नत्ता भावा आपविजंति परूविजंति देसिजति निदंसिजंति उवदंसिजंति, से एवं आया से एवं नाया से एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, सेत्तं सूअगडे २ (सू०४७) 'से किं त'मित्यादि, अथ किं तत्सूत्रकृतं ?, 'सूच पैशून्ये' सूचनात्सूत्रं निपातनादूपनिष्पत्तिः, भावप्रधानश्चायं सूत्रशब्दः, ततोऽयमर्थ ऽयमर्थः-सूत्रेण कृतं, सूत्ररूपतया कृतमित्यर्थः, यद्यपि च सर्वमङ्गं सूत्ररूपतया कृतं तथापि रूढिवशादेतदेव सूत्रकृतमुच्यते, न शेषमङ्गं, आचार्य आह-सूत्रकृतेन अथवा सूत्रकृते 'ण'मिति वाक्यालङ्कारे लोकः सूच्यते इत्यादि निगदसिद्धं यावत 'असीयस्स किरियावाइसयस्से त्यादि, अशीत्यधिकत्य क्रियावादिशतस्य चतुर Jain Ed i nternational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600244
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1924
Total Pages514
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy