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________________ श्रीमलयगिरीया नन्दीवृत्तिः ॥२०२॥ Jain Education metallonal कप्पिआकप्पिअं चुल्लकप्पसुअं महाकप्पसुअं उववाइअं रायपसेणिअं जीवाभिगमो पण्णवणा महापणवणा पमायप्पमायं नंदी अणुओगदाराई देविंदत्थओ तंदुलवेआलिअं चंदाविज्झयं सूरपण्णत्ती पोरिसिमंडलं मंडलपवेसो विजाचरणविणिच्छओ गणिविज्जा झाणविभत्ती मरविभत्ती आयविसोही वीयरागसुअं संलेहणासुअं विहारकप्पो चरणविही आउरपच्चक्खाणं महापच्चक्खाणं एवमाइ, से तं उक्कालिअं । से किं तं कालिअं ?, कालिअं अणेगविहं पपणसं, तंजहा - उत्तरज्झयणाई दसाओ कप्पो ववहारो निसीहं महानिसीहं इसिभासिआई जंबूदीवपन्नत्ती दीवसागरपन्नत्ती चंदपन्नत्ती खुड्डिआ विमाणपविभत्ती महल्लिआ विमाणपविभत्ती अंगचूलिआ वग्गचूलिआ विवाहचूलिआ अरुणोववाए वरुणोववाए गरुलोववाए धरणोववाए वेसमणोववाए वेलंधरोववाए देविंदोववाए उट्टाणसुए समुट्टाणसुए नागपरिआवणिआओ निरयावलियाओ कपिआओ कप्पवििसआओ पुष्फिआओ पुष्कचूलिआओ वण्हीदसाओ, एवमाइयाइं चउरापन्नगसहस्सा भगवओ अरहओ उसहसामिस्स आइतित्थयरस्त तहा संखिजाई पन्न For Personal & Private Use Only आवश्यक कालिको कालि ' का नि ॥२०॥ २३ www.jainelibrary.org
SR No.600244
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1924
Total Pages514
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size10 MB
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