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________________ प्रज्ञापनाया:मल कामित्यादि काली नगरं प्रीणि गणतानि देव । असल य० वृत्ती. ॥४१४॥ ञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरावगाहनामानमाह-'मणुस्सोरालियसरीरस्स ण'मित्यादि, कण्ठ्यं, नवरं त्रीणि गव्यूतानि देव-18२१शरीरकुर्वाद्यपेक्षया, तदेवमौदारिकशरीरस्य विधयः संस्थानानि प्रमाणानि चोक्तानि, सम्प्रति तानि क्रमेण वैक्रियस्याभिधित्सुराह वेउब्वियसरीरे णं भंते । कतिविधे पं० १, गो० ! दुविधे पं०, तं०-एगिदियवेउब्वियसरीरे य पंचिंदियवेउब्वियस०, जति एगिदियवेउब्वियसरीरे किं वाउक्काइयएगिदियवेउवियसरीरे अवाउक्काइयएगिदियवेउत्वियसरीरे ?, गो० ! वाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे नो अवाउक्काइयएगिदियवेउवियसरीरे, जइ वाउकाइयवेउब्वियसरीरे किं सुहुमवाउकाइयवेउवियसरीरे बायरवाउक्काइयवेउवियसरीरे?, गो०! नो सुहुमवाउक्काइयएगिदियवेउवियसरीरे बादरवाउकाइयएगिदियवेउब्वियस०, जइ बादरवाउकाइयएगिदियवेउब्वियसरीरे किं पजत्तबादरवाउक्काइयएगिदियवेउवियसरीरे अपजत्तबादरवाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे ?, गो० ! पज्जत्तबादरवाउक्काइयएगिदियवेउव्वियसरीरे नो अपञ्जत्तबादरवाउक्काइयएगिदियवेउवियसरीरे, जति पंचेंदियवेउवियसरीरे किं नेरइयपंचिंदियवेउवियसरीरे जाव किं देवपंचिदियवेउवियसरीरे ?, गो! नेरइयपंचिंदियवेउव्वियसरीरेवि जाव देवपंचिंदियवेउवियसरीरेवि, जइ नेरइयपंचिंदियवेउवियसरीरे किं रयणप्पभापुढविपंचिंदियवेउत्विय० जाव | ॥४१४॥ किं अधेसत्तमापुढविनेरइयपं० वेउवियसरीरे ?, गो०! रयणप्पभापुढविनेरइयपंचिंदियवेउब्वियसरीरेवि जाव अधेसत्तमापुढविनेरइयपंचिं० वेउब्वियसरीरेऽवि, जइ रयणप्पभापुढविनेरइयविउव्वियसरीरे किं पञ्जत्तगरय० नेरइयवेउ०स० अपजत्तगरय बादरवाजागो ! पजत्तबादरवायसरीरे जाव किं देवपाच कि रयणप्पभापुढ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600241
Book TitlePragnapanopangamsutram Part 02
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_pragyapana
File Size9 MB
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