SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रज्ञापना याः मलय० वृत्ती. १ प्रज्ञापनापदे त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियपु.(सू. २८-२९) ॥४२॥ संसारसमापनजीवप्रज्ञापना, सम्प्रति चतुरिन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापनामाह से किंतं चउरिदियसंसारसमावनजीवपनवणा , २ अणेगविहा पं०, तं०-अंधिय पत्तिय मच्छिय मसगा कीडे तहा पयंगे य। ढेकुण कुकड कुकुह नंदावचे व सिंगिरडे ॥१०६॥ किण्हपत्ता नीलपत्ता लोहियपत्ता हालिद्दपत्ता सुकिल्लपत्ता चित्तपक्खा विचित्तपक्खा ओहंजलिया जलचारिया गंभीरा णीणिया तंतवा अच्छिरोडा अच्छिवेहा सारंगा नेउरा दोला भमरा भरिली जरुला तोहा विछया पत्तविच्छया छाणविच्छया जलविच्छुया पियंगाला कणगा गोमयकीडा, जे यावन्ने तहप्पगारा, सबे ते समुच्छिमा नपुंसगा, ते समासओ दुविहा पन्नता, तं०-पजत्तगा य अपजत्तगा य, एपसिणं एवमाइयाणं चउरिदियाणं पजत्तापजत्ताणं नव जाइकुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्साई भवंतीतिमक्खायं, से तं चउरिदियसंसारसमावबजीवपचवणा ॥ (सू०२९) एतेऽपि चतुरिन्द्रिया लोकतः प्रत्येतव्याः, एतेषां च पर्याप्तापर्याप्तानां सर्वसङ्ख्यया जातिकुलकोटीनां नव लक्षा भवन्ति, शेषा अक्षरगमनिका प्राग्वत्, उपसंहारमाह-सेत्त' मित्यादि । उक्ता चतुरिन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्र-1 ज्ञापना, सम्प्रति पञ्चेन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापनामाह से किंत पंचेदियसंसारसमावन्नजीवपमवणा १,२ चउबिहापं० त०-नेरइयपंचिदियसंसारसमावनजीवपन्नवणा, तिरिक्खजोणियपंचिंदियसंसारसमावनजीवपनवणा मस्सपंचिदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा देवपंचिदियसंसारसमावनजीवपनवणा (मु०३०) ॥४२॥ Jain Educationalon For Personal & Private Use Only nelibrary.org
SR No.600240
Book TitlePragnapanopangamsutram Part 01
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1918
Total Pages752
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_pragyapana
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy