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________________ प्रज्ञापनायाः मलयवृत्ती. १७लेश्यापदे उद्देशः ॥३५५॥ 98292020-Seaso2008 पासइ ?, गो०, से जहा नामए केइ पुरिसे बहुसमरमणिज्जंसि भूमिभागसि ठिच्चा सवओ समंता समभिलोएज्जा, तए गं से पुरिसे धरणितलगयं पुरिसं पणिहाए सवओ समंता समभिलोएमाणे णो बहुयं खेत्तं जाव पासइ जाव इत्तरियमेव खे पासइ, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ कण्हलेसेणं नेरइए जाव इत्तरियमेव खेत्तं पासइ, नीललेसे णं भंते ! नेरइए कण्हलेसं नेरइयं पणिहाय ओहिणा सवओ समंता समभिलोएमाणे २ केवतियं खेत्तं जाणइ केवतियं खेत्तं पासइ , गो०, बहुतरागं खेत्तं जाणइ बहुतरागं खेतं पासइ दूरतरखेत्तं जाणइ दूरतरखेत्तं पासइ वितिमिरतरगं खेत्तं जाणइ वितिमिरतरगं खेतं पासइ विसुद्धतरागं खेत्तं जाणइ विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-नीललेसे गं नेरइए कण्हलेसं नेरइयं पणिहाय जाव विसुद्धतरागं खेत्तं जाणइ विसुद्धतरागं खेत्तं पासह?, से जहा नामए केइ पुरिसे बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ पवयं दुरूहित्ता सबओ समंता समभिलोएज्जा तए णं से पुरिसे धरणितलगयं पुरिसं पणिहाय सवओ समंता समभिलोएमाणे २ बहुतरागं खेत्तं जाणइ जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ, से तेणडेणं गोयमा ! एवं वुच्चइनीललेस्से नेरइए कण्हलेसं जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ, काउलेस्से णं भंते ! नेरइए नीललेस्स नेरइयं पणिहाय ओहिणा सबओ समंता समभिलोएमाणे २ केवतियं खेत्तं जाणइ पासइ ?, गो० ! बहुतरागं खेत्तं जाणइ पासइ जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासति, से केणटेणं भंते ! एवं वु०-काउलेस्से णं नेरइए जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ ?, गो.! से जहा नामए केइ पुरिसे बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ पव्वयं दुरूहइ २ दोवि पाए उच्चाविया (वइत्ता) सबओ समंता समभिलोएजा तए णं से पुरिसे पव्वयगयं धरणितलगयं च पुरिसं पणिहाय सबओ समंता समभिलोएमाणे बहुतरागं खेत्तं Dao9999000000000 ॥३५५॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600240
Book TitlePragnapanopangamsutram Part 01
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1918
Total Pages752
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_pragyapana
File Size14 MB
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