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________________ Ish प्रज्ञापनायाः मलयवृत्ती. SA १ प्रज्ञापनापदे मनुष्यप्रज्ञा. | (सू.३७) सहसंमुइया आसवसंवरे य रोएइ उ निसग्गो ॥११६॥ जो जिणदिटे भावे चउविहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव ननहत्तिय निसग्गरुइत्ति नायवो ॥११७॥ एए चेव उ भावे उवदिहे जो परेण सद्दहइ । छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइत्ति नायबो॥ ॥११८॥ जो हेउमयाणतो आणाए रोयए पवयणं तु । एमेव नन्नहत्ति य एसो आणारुई नाम ॥११९।। जो सुत्तमहिजन्तो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरण व सो सुत्तरुइत्ति णायबो॥१२०॥ एगपएणेगाई पदाइं जो पसरई उ सम्मत्तं । उदएव तिल्लविंदू सो बीयरुइत्ति नायवो ॥१२१॥ सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जस्स अत्थओ दिहं । इक्कारस अंगाई पइनगा दिहिवाओ य ॥१२२॥ दवाण सव्वभावा सव्वपमाणेहिं जस्स उवलद्धा । सबाहिं नयविहीहिं वित्थाररुइत्ति नायबो ॥१२३॥दसणनाणचरित्ते तवविणए सत्वसमिइगुत्तीस । जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम ॥१२४॥ अणभिगहियकुदिही संखेवरुइत्ति होइ नायबो । अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु॥१२५।।जो अत्थिकायधम्म सुयधम्म खलु चरित्तधम्मं च । सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइत्ति नायवो ॥१२६॥ परमत्थसंथवो वा सुदिपरमत्थसेवणा वावि । वावन्नकुदसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा ॥ १२७॥ निस्संकिय निकंखिय निवितिगिच्छा अमूढदिट्टी य । उववूहथिरीकरणे वच्छल्लपभावणे अह ॥१२८॥ से तं सरागदंसणारिया । से किं तं वीयरायदंसणा [य] रिया?, वीयरायदसणा [यरिया दुविहा प०, तं०-उवसंतकसायवीयरायदंसणा [य रिया य खीणकसायवीयरायदंसणा [य] रिया य । से किं तं उवसंतकसायवीयरायदंसणा [यरिया ?, उवसंतकसायवीयरायदंसणा [य] रिया दुविहा प०, तं०-पढमसमयउवसंतकसायवीयरायदसणा [य] रियाय अपढमसमयउवसंतकसायवीयरायदंसणा य रिया य, अहवा चरिमसमयउवसंतकसायवी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600240
Book TitlePragnapanopangamsutram Part 01
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1918
Total Pages752
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_pragyapana
File Size14 MB
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