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________________ वासे जाई कुलाई भवंति अड्डाइं जहा दढप्पइन्नो जाव सिज्झिहिति बुझिहिति भाव अंतं काहिति । तं एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं निरयावलियाणं पढमरस अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते ॥ ॥ पढमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥१॥ ___ जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं निरयावलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते अज्झयणस्स निरयावलियाण समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं के अटे पन्नत्ते ? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नगरी होत्या । पुनभद्दे चेइए । कोणिए राया। पउमावई देवी । तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रनो भज्जा कोणियस्स रनो चुल्लमाउया सुकाली नामं देवी होत्या, सुकुमाला । तोसे णं सुकालीए देवीए पुत्ते सुकाले नाम कुमारे होत्था, सुकुमाले । तते णं से सुकाले कुमारे अन्नया कयाति तिहिं दंतिसहस्सेहिं जहा कालो कुमारो निरवसेसं तं चेव जाव महाविदेहे वासे अंतं काहिति ॥२॥ एवं सेसा वि अट्ट अज्झयणा नेयवा पढमसरिसा, णवरं मायातो सरिसणामाओ॥१०॥ ॥ निरयावलियातो सम्मत्तातो । निक्खेवो सवेसि भाणियबो तहा ॥ ॥ पढमो वग्गो सम्मत्तो॥ ॥ इति निरयावलिकास्योपाङ्गव्याख्या ।। For Personal & Private Use Only dan Educatio wilnelibrary.org
SR No.600238
Book TitleNiryavalikasutram
Original Sutra AuthorChandrasuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1922
Total Pages86
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nirayavalika
File Size9 MB
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