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________________ श्रीराजप्रश्नी मलयगिरी- * या वृत्तिः सूर्याभस्याभिषेक मू०४२ गतिया देवा मूरियाभं विमाणं नच्चोयगं नातिमट्टियं पविरलफुसियरयरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदगं वासं वासंति,अप्पेगतिया देवा हयरयं नहरयं भट्टरयं उवसंतरयं पसंतरयं करेंति,अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं आसियसंमजिओवलित्तं सुइसंमट्टरत्थंतरावणवीहियं करेंति, अप्पेगतिया देवा मूरियाभं विमाणं मंचाइमंचकलियं करेंति, अप्पेगइयो देवा सूरियाभं विमाणं णाणाविहरागोसियं झयपडागाइपडागमंडियं करेंति अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं लाउल्लोइयमहियं गोसीससरसरत्तचंदणदद्दरदिष्णपंचंगुलितलं करेंति अप्पेगतिया देवा मूरियाभं विमाणं उवचियचंदणकलसं चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरिया विमाणं आसत्तोसत्तविउलवटवग्घारियमल्लदामकलावं करेंति अप्पेगतिया देवा सूरियाभ विमाणं पंचवण्णसुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं कालागुरुपवरकुंदुरुचतुरुक्कधूवमघमघंतगंधुध्धूयाभिरामं करेंति, अप्पेमइया देवा सूरियाभविमाणं सुगंधगंधियं गंधवहिभृतं करेंति अप्पेगतिया दवा हिरण्णवासं वासंति सुवरणवासंवासंतिरययवासं वासंति व इरवासं० पुप्फवासं०फलवासं.मल्लवासंगंधवासं चुण्णवासं०आभणवासंवासंति अप्पेगतिया देवा हिरणविहिं भाएंति,एवं मुवन्नविहिं भाएंति रयणविहिं पुप्फविहि फल विहिं मल्लविहिं चुण्णविहिं वत्थविहिं गंधविहिं०,तत्थ अप्पेगतिया देवा आभरणविहि भाएंति,अप्पेगतिया चउविहं वाइतं वाइंति-ततं ॥१००॥ Jain Education For Personal & Private Use Only .jainelibrary.org
SR No.600237
Book TitleRajprashniyasutram
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1925
Total Pages302
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size6 MB
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