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________________ * * * एगेंदिया भादियं पडुच्च एगेन्दियावि जीवा बेंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिय"त्ति, एवं शेषेष्वपि, तथैव 2 'तेइंदिय'त्ति त्रीन्द्रियाः येषां वे ते एव तृतीयं घ्राणं, 'चरी'त्ति प्रक्रमाचतुरिन्द्रियाः येषां त्रीण्युक्तरूपाणि चतुर्थ चक्षुः, पञ्चेन्द्रियाश्चैव-येषामेतान्येव चत्वारि पञ्चमं श्रोत्रमिति सूत्रार्थः ॥ तत्र तावद् द्वीन्द्रियवक्तव्यता प्रतिपिपादयिषुरिदमाह। बेइंदिया उजे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १२६॥ किमिणो सोमंगला चेव, अलसा माइवाहया ।वासीमुहा य सिप्पीया, संखा संखणगा तहा ॥ १२७॥ पल्लोयाणु-/ |ल्लया चेव, तहेव य वराडगा। जलूगा जालगा चेव, चंदणा य तहेव य ॥१२८ ॥ इति बेइंदिया एए, गणेगहा एवमायओ। लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १२९ ॥ संतई पप्पडणाईया, अपज्जव६/सियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥१३० ॥ वासाइं बारसेव उ, उक्कोसेण वियाहिया। बेइंदियआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १३१ संखिन्जकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइंदियकायठिई, |तं कायं तु अमुंचओ॥१३२॥ अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं । बेइंदियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं 8॥१३३ ॥ एएसि वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥ १३४ ॥ बेइंदिया इत्यादि सूत्रनवकम् , इदमपि प्रायस्तथैव, नवरं द्वीन्द्रियाभिलापः कर्त्तव्यः, तथा 'कृमयः' अशुच्यादि * * **** Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600236
Book TitleUttaradhyayansutram Part 03
Original Sutra AuthorVadivetal, Shantisuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1917
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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