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________________ * 5+4- * *** तत्थ वियाहिया । सुहमा सव्वलोगंमि, लोगदेसे य बायरा ॥८६ ॥ संतई पप्पणाईया, अपजवहै सियावि या ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ ८७ ॥ सत्तेव सहस्साई, वासाणुक्कोसिया भवे। आउठिई आऊणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ ८८॥ असंखकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई आऊणं, तं कायं तु अमुंचओ॥ ८९ ॥ अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढमि सए काए, आउजीवाण अंतरं ॥९०॥ एएसिं वन्नओ चेव, गंधओरसफासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्सओ॥११॥ सूत्राष्टकं व्याख्यातप्रायमेव नवरं 'सुद्धोदकं' मेघमुक्तं समुद्रादिसम्बन्धि च जलम् 'ओसे'त्ति अवश्यायः शरदादिषु प्राभातिकसूक्ष्मवर्षः 'हरतनु' प्रातः सस्नेहपृथिव्युद्भवस्तृणाग्रजलबिन्दुः 'महिका' गर्भमासेषु गर्भसूक्ष्मवर्षा 'हिमा प्रतीतमेव, सप्तव सहस्राणि वर्षाणामुत्कृष्टिका भवेत् , काऽसौ ?-आयुःस्थितिः 'अपाम्' इत्यजीवानामिति सूत्राष्टकार्थः ॥ उक्ता अब्जीवाः, सम्प्रति वनस्पतिजीवानाह दुविहा वणस्सईजीवा, सुहमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुणो ॥९२॥ बायरा जे उ पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया । साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य ॥ ९३ ॥ पत्तेयसरीरा उ, गहा ते पकित्तिया ।रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा ॥ ९४ ॥ वलय पव्वया कुहणा, जलरुहा ओसही तिणा । हरियकाया उ बोद्धव्वा, पत्तेया इति आहिया ॥९५॥ साहारणसरीरा उ, गहा ते पकि * * * For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600236
Book TitleUttaradhyayansutram Part 03
Original Sutra AuthorVadivetal, Shantisuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1917
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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