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________________ ३० उत्तराध्य. विवक्षितक्षेत्रावस्थितेः प्रच्युतानां पुनस्तत्प्राप्य॑वधानमेतद्-उक्तरूपं व्याख्यातं, तेषा हि विवक्षितक्षेत्रावस्थिति- जीवाजीव प्रच्युतानां कदाचित्समयावलिकादिसङ्ख्यातकालतोऽसंख्यातकालाद्वा पल्योपमादेर्यावदनन्तकालादपि सम्भवतीति बृहद्वृत्तिः विभक्तिः सूत्रत्रयार्थः॥ एतानेव भावतो विधातुमाह॥६७५॥ वनओ गंधओ चेव, रसओ फासओ तहा। संठाणओ य विन्नेओ, परिणामो तेसि पंचहा ॥१५॥ वन्नओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। किण्हा नीला य लोहिया, हालिद्दा सुक्किला तहा ॥१६॥ गंधओ परिणया जे य, दुविहा ते वियाहिया। सुन्भिगंधपरिणामा, दुन्भिगंधा तहेव य ॥१७॥ रसओ परिणयार जे उ, पंचहा ते पकित्तिया । तित्त कडुयकसाया, अंबिला महरा तहा ॥१८॥ फासओ परिणया जे उ, अट्ठहा ते पकित्तिया। कक्खडा मउया चेव, गुरुया लहुया तहा ॥ १९॥ सीया उण्हा य निद्धा य, तहा लुक्खा य आहिया । इति फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया ॥२०॥ संठाणपरिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया । परिमंडला य वटा य, तंसा चउरंसमायया ॥ २१॥ वण्णओ जे भवे किण्हे, भइए से उ ॥६७५॥ ४|गंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥२२॥ वपणओ जे भवे नीले, भइए से उ गंधओ|| है रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥२३॥ वण्णओ लोहिए जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥२४॥ वणओ पीअए जे उ, भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ SAXMMSek dain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600236
Book TitleUttaradhyayansutram Part 03
Original Sutra AuthorVadivetal, Shantisuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1917
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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