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उत्तराध्य. 18 सुखावहमेव शुभावहमेव वा, यथा चैतदेवं तथा फलोपदर्शनद्वारेणाह-यं 'चरित्वा' आसेव्य बहवो जीवाः 'तीर्णाः चरणवि
है अतिक्रान्ताः 'संसारसागर' भवसमुद्रं मुक्तिमवाप्ता इत्यभिप्राय इति सूत्रार्थः ॥ बृहद्वृत्तिः
मध्य० ३१ ॥११॥
__ एगओ विरई कुजा, एगओ अपवत्तणं । अस्संजमे नियतिंच, संजमे य पवत्तणं ॥२॥रागद्दोसे य दो पावे, पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्खू संभई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥३॥ दंडाणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं, तियं । जे भिक्खू चयई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥४॥ दिव्वे य जे उवस्सग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे। जे भिक्खू सहई निच्चं, से न अच्छह मंडले ॥५॥ विगहाकसायसन्नाणं, झाणाणं च दुयं तहा । जे भिक्खू | वजई निचं, से न अच्छह मंडले ॥६॥ वएसु इंदियत्थेसु, समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निचं,
| सेन अच्छइ मंडले ॥७॥ लेसासु छसुकाएसु, छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ दि मंडले ॥८॥ पिंडुग्गहपडिमासु, भयहाणेसु सत्तसु । जे भिक्खु जयई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥९॥
मएम.बंभगुत्तीसु, भिक्खुधम्ममि दसविहे । जे भिक्ख जयई निच्चं. से न अच्छइ मंडले ॥१०॥ उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूर्ण पडिमासु य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ ११॥ किरियामु| In६१॥ भूयगामेसु, परमाहम्मिएसु य । जे भिक्खु जयई निचं, से न अच्छह मंडले ॥२२॥ गाहासोलसएहि, तहाx अस्संजमंमि अ।जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मंडले ॥१३॥ बंभंमि नायज्झयणेसु, ठाणेसु यऽसमा-14
FASHAARIPOSASHISH
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