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सम्यक्त्व
पराक्रमा.
उत्तराध्य. भंते! जीवे कि जणेइ , २ अणुस्सुयत्तं जणेइ, अणुस्सुए णं जीवे अणुकंपए अणुब्भडे विगयसोगे चरित्तमो
हणिज्जं कम्मं खवेइ २९ ॥ अपडिबद्धयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ १, २ निस्संगत्तं जणेइ, निस्संगत्तेणं जीवे बृहद्धृत्तिः
एगे एगग्गचित्ते दिया य राओ य असजमाणे अप्पडिबद्धे आवि विहरइ ३०॥ विवित्तसयणासणयाए ॥५७५॥
हाणं भंते! जीव किं जणेइ , २ चरित्तगुत्तिं जणेइ, चरित्तगुत्ते णं जीवे विवित्ताहारे दृढचरित्ते एगंतरए मुक्खभावपडिवन्ने अट्टविहं कम्मगंठिं निजरेइ ३१॥ विणिवणयाए णं भंते ! जीये किंजणेइ , २ पावकम्माणं अकरणयाए अन्भुढेइ पुत्ववद्धाण य निजरणयाए पावं नियत्तेइ, तओ पच्छा चाउरंतं संसारकंतारं वीईवयइ ३२ ॥ संभोगपञ्चक्खाणेणं भंते !जीवे किंजणेइ १,२ आलंबणाई खवेइ, निरालंबणस्स य आययट्ठिया जोगा भवन्ति, सएणं लाभेणं संतूसइ परस्स लाभं नो आसाएइ नो तक्केइ नो पीहेइ नो पत्थेइ नो अ-1 भिलसइ, परस्स लाभं अणासाएमाणे अतकेमाणे अपीहेमाणे अपत्थेमाणे अणभिलसेमाणे दुचं सुहसिज्ज ६ उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ३३॥ उवहिपचक्खाणेणं भंते !जीवे किं जणेइ ?,२अपलिमंथं जणेइ, निरुवहिए णं जीवे निकखे उवहिमंतरेण य न संकिलिस्सइ ३४॥ आहारपञ्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किंजणेइ, २ जीवियासंसप्पओगं वुच्छिदइ, जीवियासंसप्पओगं वुच्छिदित्ता जीवे आहारमंतरेण न संकिलिस्सइ ३५॥ कसायपच्चक्खाणेणं भंते ? जीवे किं जणेइ ?,२ वीयरायभावं जणेइ वीयरायभावं पडिवन्नेऽविय णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ ३६ ॥ जोगपञ्चक्खाणेणं भंते !, २ अजोगयं जणेइ, अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न बन्धइ पुव्वबद्धं
SARORSCORA
**SHRSHA
॥५७५॥
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