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________________ % % % !!अपणो अ। मीहो व सहेण न संतसिज्जा, वइजोग सुच्चा न असन्भमाहू ॥१८॥ उवेहमाणो उ परिन्व इजा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खइज्जा । न सव्व सव्वत्थऽभिरोअइज्जा, न यावि पूर्य गरिहं च संजए ॥१९॥ अणेग छंदा मिह माणवेहिं, जे भावओ से पकरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइंति भीमा, दिव्वा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥२०॥ परीसहा दुव्विसहा अणेगे, सीयंति जत्था बहुकायरा नरा।से तत्थ पत्ते न वहिज है पंडिए, संगामसीसे इव नागराया ॥ २१॥ सीओसिणा दंसमसगा य फासा, आयंका विविहा फुसंति है देहं । अकुकुओ तत्थऽहियासइज्जा, रयाई खेविज पुराकडाइं ॥ २२॥ पहाय रागं च तहेव दोसं, मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणे । मेरुव्व वाएण अकंपमाणे, परीसहे आयगुत्ते सहिज्जा ॥ २३ ॥ अणुन्नए नावणए महेसी, न यावि पूर्य गरिहं च संजए । से उजुभावं पडिवज संजए, निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ॥२४॥ अरइरइसहे पहीणसंथवे, विरए आयहिए पहाणवं । परमट्टपएहिं चिट्ठई, छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥ २५॥ विवित्तलयणाई भइज ताई, निरोवलेवाई असंथडाई। इसीहिं चिन्नाई महायसेहिं, कारण फासिज्ज परीसहाई ॥ २६ ॥ सण्णाणनाणोवगए महेसी, अणुत्तरं चरियं धम्मसंचयं । अणुत्तरेनाणधरे जसंसी, ओभासई सूरिए वंऽतलिक्खे ॥ २७॥ | त्रयोदश सूत्राणि प्रायः सुगमान्येव, नवरं 'हित्वा' वक्त्वा संश्चासौ प्रन्यश्च सद्भन्थः, प्राकृतत्वाद्विन्दुलोपस्तं, % * **** * Jain Education wdjainelibrary.org a For Personal & Private Use Only l
SR No.600235
Book TitleUttaradhyayansutram Part 02
Original Sutra AuthorVadivetal, Shantisuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year
Total Pages568
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size10 MB
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