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उत्तराध्य.
बृहद्वृत्तिः
महानिर्दीन्थीया०
॥४७४॥
मंगं च पीडई। इंदासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ॥ २१॥ उवडिया मे आयरिया, विजामंतचिगि- च्छगा। अबीआ सत्थकुसला, मंतमूलविसारया ॥ २२॥ ते मे तिगिच्छं कुव्वंति, चाउप्पायं जहाहियं ।। न य मे दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया ॥ २३ ॥ पिया मे सव्वसारंपि, दिजाहि मम कारणा । न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया ॥२४॥ माया (वि) मे महाराय, पुत्तसोगदुहद्दिया ।न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया ॥ २५॥ भायरा मे महाराय!, सगा जिट्ठकणिट्ठगा । न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया ॥ २६ ॥ भइणीओ मे महाराय!, सगा जिट्टकणिगा।न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया ॥ २७॥ भारिया मे महाराय, अणुरत्तमणुव्वया । अंसुपुन्नहिं नयणेहि, उरं मे परिसिंचई ॥ २८॥ अन्नं पाणं च पहाणं च, गंधमल्लविलेवणं । मए नायमनायं वा, सा बाला नोवभुंजई ॥२९॥ खणंपि मे महाराय !, पासाओवि न फिट्टई । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥३०॥ तओह एवमाहंसु, दुक्खमा हु पुणो पुणो । वेयणा अणुहवि जे, संसारंमि अणंतए ॥ ३१॥ सयं च जइ मुंचिज्जा, वेयणा विउला इओ। खंतो दंतो निरारंभो, पव्वइए अणगारियं ॥ ३२॥ एवं च चिंतइत्ता णं, पासुत्तो मि| नराहिवा!। परियतंतीइ राईए, वेयणा मे खयं गया ॥ ३३ ॥ तओ कल्ले पभायंमि, आउच्छित्ता ण बंधवे । खंतो दंतो निरारंभो, पव्वईओ अणगारियं ॥ ३४ ॥ तोऽहं नाहो जाओ, अप्पणो अ परस्स य ।। सव्वेसिं चेव भूयाणं, तसाणं थावराण य ॥ ३५॥
॥४७४॥
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