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श्रीस्थानाङ्गसूत्रवृत्तिः
२ स्थानकाध्ययने उद्देशः३
सुवग्गू दो गंधिला दो गंधिलावती ३२ दो खेमाओ दो खेमपुरीओ दो रिट्ठाओ दो रिट्ठपुरीओ दो खग्गीतो दो मंजुसाओ दो ओसधीओ दो पोंडरिगिणीओ दो सुसीमाओ दो कुंडलाओ दो अपराजियाओ दो पभंकराओ दो अंकावईओ दो पम्हावईओ दो सुभाओ दो रयणसंचयाओ दो आसपुराओ दो सीहपुराओ दो महापुराओ दो विजयपुराओ दो अपराजिताओ दो अवराओ दो असोयाओ दो विगयसोगाओ दो विजयातो दो वेजयंतीओ दो जयंतीओ दो अपराजियाओ दो चक्कपुराओ दो खग्गपुराओ दो अवज्झाओ दो अउज्झाओ ३२ दो भद्दसालवणा दो गंदणवणा दो सोमणसवणा दो पंडगवणाई दो पंडुकंबलसिलाओ दो अतिपंडुकंबलसिलाओ दो रत्तकंबलसिलाओ दो अइरत्तकंबलसिलाओ दो मंदरा दो मंदरचूलिताओ, धायतिसंडस्स णं दीवस्स वेदिया दो गाउयाई उद्धमुच्चत्तेणं पन्नत्ता । (सूत्रं ९२) कालोदस्स णं समुद्दस्स वेइया दो गाउयाइं उर्दू उच्चत्तेणं पन्नत्ता । पुक्खरवरदीवडुपुरच्छिमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा पं० बहुसमतुल्ला जाव भरहे चेव एरवए चेव तहेव जाव दो कुराओ पं० देवकुरा चेव उत्तरकुरा चेव, तत्थ णं दो महतिमहालता महङमा पं० तं०-कूडसामली चेव पउमरुक्खे चेव, देवा गरुले चेव वेणुदेवे पउमे चेव, जाव छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरति । पुक्खरवरदीवडपञ्चच्छिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा पं० तं०-तहेव णाणत्तं कूडसामली चेव महापउमरुक्खे चेव, देवा गरुले चेव वेणुदेवे पुंडरीए चेव, पुक्खरवरदीवड़े णं दीवे दो भरहाइं दो एरवयाइं जाव दो मंदरा दो मंदरचूलियाओ, पुक्खरवरस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाई उडमुञ्चत्तेणं पन्नत्ता, सव्वेसिपि णं दीवसमुदाणं वेदियाओ दो गाउयाइं उडमुच्चत्तेणं पण्णत्ताओ (सू० ९३)
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