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________________ सप्तमाष्टमी सम० श्रीसमवा- यांगे श्रीअभय वृत्तिः ॥१३॥ REGOCIOSOSSESSORAS इति, ऊर्बोच्चत्वेन न तिर्यगुञ्चत्वेनेति ‘होत्था'बभूवेति, तथा अभिजिदादीनि सप्त नक्षत्राणि पूर्वद्वारिकाणि-पूर्व- दिशि येषु गच्छतः शुभं भवति, एवमश्विन्यादीनि दक्षिणद्वारिकाणि पुष्यादीन्यपरद्वारिकाणि खात्यादीन्युत्तरद्वारिकाणीति सिद्धान्तमतमिह तु मतान्तरमाश्रित्य कृत्तिकादीनि सप्त सप्त पूर्वद्वारिकादीनि भणितानि, चन्द्रप्रज्ञप्तौ तु बहुतराणि मतानि दर्शितानीहार्थ इति, स्थितिसूत्रे समादीन्यष्टौ विमाननामानीति ॥ ७॥ अट्ठ मयट्ठाणा प० तं०-जातिमए कुलमए बलमए रूवमए तवमए सुयमए लाभमए इस्सरियमए, अट्ठ पवयणमायाओ प० तं०-ईरियासमिई भासासमिई एसणासमिई आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिई उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपारिट्ठावणियासमिई मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती, वाणमंतराणं देवाणं चेइयरुक्खा अट्ट जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं प०, जंबू णं सुदंसणा अट्ट जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं प०, कूडसामली णं गरुलावासे अट्ठ जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं प०, जंबुद्दीवस्स णं जगई अट्ठ जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं प०, अट्ठसामइए केवलिसमुग्घाए प० त०-पढमे समए दंडं करेइ बीए समए कवाडं करेइ तइए समए मंथं करेइ चउत्थे समए मंथंतराइं पूरेइ पंचमे समए मंथंतराइ पडिसाहरइ छट्टे समए मंथं पडिसाहरइ सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ ततो पच्छा सरीरत्थे भवइ, पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणिअस्स अट्ट गणा अट्ठ गणहरा होत्था, तं०-सुभे य सुभघोसे य, वसिढे बंभयारि य । सोमे सिरिधरे चेव, वीरभद्दे जसे इय ॥१॥ अट्ट नक्खत्ता चंदेणं सद्धिं पमई जोगं जोएंति, तं०-कत्तिया १ रोहिणी २ पुणव्वसू ३ महा ४ चित्ता ५ विसाहा ६ अणुराहा ७ जेहा ८, इमीसे णं रणप्पहाए पुढवीए ॥१३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600227
Book TitleSamvayangasutram
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size6 MB
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