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________________ श्रीसमवा यांगे श्रीअभय ० वृति: ॥१३२॥ Jain Education अणागए काले अनंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियट्टिस्संति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीतकाले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतसंसारकंतारं वीईवइंसु एवं पडुप्पण्णेऽवि एवं अणागएवि, दुवालसंगे णं गणिपिsaण कयावि णत्थि कयाइ णासी ण कयाइ ण भविस्सइ भुविं च भवति य भविस्सति य धुवे णितिए सासए अक्खए अश्वए safe fu से जहा णामए पंच अत्थिकाया ण कयाइ ण आसि ण कयाइ णत्थि ण कयाइ ण भविस्सति भुविं च भवति य भविस्सति य धुवा णितिया सासया अक्खया अवया अवट्टिया णिच्चा एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे ण कयाइ ण आसि ण कयाइ णत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ भुविं च भवति य भविस्सइ य धुवे जाव अवट्ठिए णिचे, एत्थ णं दुवालसंगे गणिपिडगे अनंता भावा अणंता अभावा अनंता हेऊ अणंता अहेऊ अणंता कारणा अणंता अकारणा अणंता जीवा अनंता अजीवा अणंता भवसि - द्धिया अनंता अभवसिद्धिया अनंता सिद्धा अनंता असिद्धा आघविजंति पण्णविअंति परूविअंति दंसिजंति निदंसिजंति उवदंसिअंति, एवं दुवालसँगं गणिपिडगं इति ( सूत्रं १४८ ) 'इच्चेय'मित्यादि, इत्येतद्द्वादशाङ्गं गणिपिटकमतीतकाले अनन्ता जीवा आज्ञया विराध्य चतुरन्तं संसार कान्तारं 'अणुपरियर्द्विसु 'त्ति अनुपरिवृत्तवन्तः, इदं हि द्वादशाङ्गसूत्रार्थोभयभेदेन त्रिविधं ततश्च आज्ञया सूत्राज्ञया अभिनि| वेशतोऽन्यथापाठादिलक्षणया अतीतकाले अनन्ता जीवाश्चतुरन्तं संसारकान्तारं नारकतिर्यग्नरामरविविधवृक्ष| जालदुस्तरं भवाटवीगहनमित्यर्थः, अनुपरावृत्तवन्तो जमालिवत् अर्थाज्ञया पुनरभिनिवेशतोऽन्यथाप्ररूपणादिलक्षणया For Personal & Private Use Only १४८ गणि पिटकवि राधनाराधनाफलं. | ॥१३२॥ inelibrary.org
SR No.600227
Book TitleSamvayangasutram
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size6 MB
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