SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 610
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ शतके एकेन्द्रियशतानि१२ उद्दे०११सू ८५२-८५४ व्याख्या- ४ गडीओ पन्नत्ताओ एवं जहा एगिदियसएसु अणंतरोववन्नगउद्देसए तहेव पन्नत्ताओ तहेव बंधंति तहेव प्रज्ञप्तिः वेदेति जाव अणंतरोववन्नगा बायरवणस्सइकाइया । अणंतरोववन्नगएगिदिया णं भंते! कओ उववजंति? अभयदेवी जहेव ओहिए उद्देसओ भणिओ तहेव । अणंतरोववन्नगएगिदियाणं भंते! कति समुग्घाया पन्नत्ता?, गोययावृत्तिः२/ मा! दोन्नि समुग्घाया प०, तं०-वेदणासमुग्घाए य कसायसमुग्घाए य । अणंतरोववन्नगएगिदियाणं ॥९६२॥ भंते! कितुल्लहितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति? पुच्छा तहेव, गोयमा! अत्थेगइया तुल्लद्वितीया तुल्ल विसेसाहियं कम्मं पकरेंति अत्थेगइया तुल्लद्वितीया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, से केणटेणं जाव वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति?, गोयमा! अणंतरोववन्नगा एगिदिया दुविहा प०२०-अत्थेगइया समाउया समोववन्नगा अत्थेगइया समाउया विसमोववन्नगा तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा ते णं तुल्लहितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववन्नगा ते णं तुल्लहितीया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, से तेणटेणं जाव वेमायविसेसाहियं० पकरेंति । सेवं भंते! २त्ति ॥ (सूत्रं ८५२) ॥ ३४॥२॥ कइविहा णं भंते ! परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?, गोयमा! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिदिया प०, तं० पुढविकाइया भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति । परंपरोववन्नगअपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! ६ इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए २ जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उवव० एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमो उद्देसओ ॥९६२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600226
Book TitleBhagwati sutram Part 03
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1921
Total Pages654
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy