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________________ व्याख्या- काउलेस्सेति अभिलावो भाणियबो॥ चउत्थं एगिंदियसयं सम्मत्तं ॥४॥ कइविहा णं भंते ! भवसिद्धीया ३२ शतके प्रज्ञप्तिः एगिंदिया प०१, गोयमा! पंचविहा भवसिद्धिया एगिदिया प०, तं०-पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया उद्दे: २८ अभयदेवीभेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति । भवसिद्धियअपजत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भंते! कति कम्मप्पग उद्वर्तना सू या वृत्तिः२ दडीओ प०१, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमिल्लगं एगिदियसयं तहेव भवसिद्धियसयंपि भाणियचं, उद्देस ८४१-८४२ ३३ शतके ॥९५३॥ गपरिवाडी तहेव जाव अचरिमोत्ति । सेवं भंते!२ त्ति॥ पंचमं एगिदियसयं सम्मत्तं ॥५॥ कइविहा णं । अवान्तर भंते ! कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया प०?, गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया प०, शत. १२ पढविकाइया जाव चणस्सइकाइया, कण्हलेस्सभवसिद्धीयपुढविकाइया णं भंते! कतिविहा प०१. गोयमा! ॥ एकेन्द्रियदविहा पतं०-मुहमपुढविकाइया य बायरपुढविकाइया य, कण्हलेस्सभवसिडीयमुहमपुढविकाइया णं भेदादि सू. | भंते। कहविहा प०१, गोयमा! दुविहा पं० तंजहा-पजत्तगा य अपज्जत्तगा य, एवं बायरावि, एएणं अभि-||६||८४३-८४८ लावणं तहेव चउक्कओ भेदो भा०, कण्हलेस्सभवसिद्धीयअपजत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ प०, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसए तहेव जाव वेदेति । काविहा णं भंते! अणंतरोववन्नगा कण्हलेस्साभवसिद्धिया एगिदिया प०, गोयमा! पंचविहा अणंतरोववन्नगा जाव वणस्सइकाइया, अणंतरोववन्नगकण्हलेस्सभवसिद्धीयपुढविकाइया णं भंते ! कतिविहा प०१, गोयमा ! दुविहा प०, तं०- ॥ ॥९५३॥ सुहमपुढविका० एवं दुयओ भेदो। अणंतरोववन्नगकण्हलेस्सभवसिद्धीयसुहमपुढविकाइयाणं भंते ! कह क SAUSIASISARUSHA SARGAOSAROMANK Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600226
Book TitleBhagwati sutram Part 03
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1921
Total Pages654
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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