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________________ | जघन्यस्थितिकत्वाद्भवन्ति तानि चावगाहना १ लेश्या २ दृष्टि ३ अज्ञान ४ योग ५ समुद्घात ६ स्थित्य ७ ध्यवसाना८ नुबन्धा ९ ख्यानि ॥ अथ मनुष्येभ्यस्तमुत्पादयन्नाह___ जइ मणुस्सहिंतो उवव०कि सन्नीमणुस्सहिंतो उवव० असन्नीमणुस्से० १, गोयमा ! सन्नीमणुस्सहिंतो असन्नीमणुस्सहिंतोवि उवव०, असन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएसु० से णं भंते ! केवतिकालं एवं जहा असन्नीपंचिंदियतिरिक्खस्स जहन्नकालहितीयस्स तिन्नि गमगा तहा एयस्सवि ओहिया तिन्नि |गमगा भाणि तहेव निरवसे० सेसा छ न भण्णंति १॥ जइ सन्निमणुस्सहिंतो उवव० किं संखेजवासाउय० असंखेजवासाउय०१, गोयमा! संखेज्जवासाउय. णो असंखेजवासाउय०, जइ संखेजवासाउय. किं | पज्जत्त० अपजत्त०१, गोयमा ! पज्जत्तसंखे० अपज्जत्तसंखेजवासा०, सन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएसु उवव० से णं भंते ! केवतिकालं.? गोयमा ! जह. अंतोमु० उक्को. बावीसं वाससहस्सठितीएसु, ते णं भंते ! जीवा एवं जहेव रयणप्पभाए उववजमाणस्स तहेव तिसुवि गमएसु लद्धी नवरं ओगा|हणा जह• अंगुलस्स असंखेजइभागं उको पंचधणुसयाई ठिती जह. अंतोमुहुत्तं उक्को० पुषकोडी एवं अणुबंधो संवेहो नवसु गमएसु जहेव सन्निपंचिंदियस्स मझिल्लएसु तिमु गमएसु लद्धी जहेव सन्निपंचिदियस्स सेसं तं चेव निरवसेसं पच्छिल्ला तिन्नि गमगा जहा एयस्स चेव ओहिया गमगा नवरं ओगाहणा जह पंचधणुस० उक्कोसे० पंच धणुसयाई ठिती अणुबंधो जह० पुचकोडी उक्कोसेणवि पुवको० सेसं तहेव नवरं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600226
Book TitleBhagwati sutram Part 03
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1921
Total Pages654
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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