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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥ ६०२॥ उवव० ? पुच्छा, तहेव गोयमा ! पंचसु णं अणुत्तरविमाणेसु संखेज्जवित्थडे अणुत्तरविमाणे एगसमएणं जह एक्को वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेज्जा अणुत्तरोववाइया देवा उववजंति एवं जहा गेवेज़विमाणेसु संखेजवित्थडेसु नवरं किण्हपक्खिया अभवसिद्धिया तिसु अन्नाणेसु एए न उववजंति न चयंति न पन्नत्त| एसु भाणियद्वा अचरिमावि खोडिज्जति जाव संखेज्जा चरिमा पं० सेसं तं, असंखेजवित्थडेसुवि एए न भन्नंति नवरं अचरिमा अस्थि, सेसं जहा गेवेज्जएस असंखेज्जवित्थडेसु जाव असंखेजा अचरिमा प० । चोसट्ठीए णं भंते ! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु असुरकुमारावासेसु किं सम्मद्दिट्ठी असुरकु मारा उवव०मिच्छादिट्ठी एवं जहा रयणप्पभाए तिन्नि आलावगा भणिया तहा भाणियवा, एवं असंखेज्ज| वित्थडेसुवि तिन्नि गमगा, एवं जाव गेवेज्जवि० अणुत्तरवि० एवं चेव, नवरं तिसुवि आलावएसु मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी य न भन्नंति, सेसं तं चेव । से नूणं भंते ! कण्हलेस्सा नीलजाव सुक्कलेस्से भवित्ता | कण्हलेस्सेसु देवेसु उवव० ?, हंता गोयमा ! एवं जहेव नेरइएस पढमे उद्देसए तहेव भाणियां, नीललेसाएवि जहेब नेरइयाणं जहा नीललेस्साए, एवं जाव पम्हलेस्सेसु सुक्कलेस्सेसु एवं चेव, नवरं लेस्सट्ठाणेसु विमुज्झ| माणेसु वि० २ सुक्कलेस्सं परिणमति सु० २ सुक्कलेस्सेसु देवेसु उववज्जंति से तेणट्टेणं जाव उववज्जंति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! (सूत्रं ४७३ ) ॥ १३- २॥ 'कविहे 'त्यादि, 'संखेज्जवित्थडावि असंखेज्जवित्थडावि'त्ति इह गाथा - " जंबुद्दीवसमा खलु भवणा जे हुंति Jain Education International For Personal & Private Use Only | १३ शतके २ उद्देशः देवेष्वावासोत्पादादि सू ४७३ ॥६०२ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600225
Book TitleBhagwati sutram Part 02
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages664
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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