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________________ व्याख्या प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥५०६ ॥ सयंजले वग्गुन्ति विमाणा 'जहा चउत्थसए'त्ति क्रमेण च तानीशानलोकपालानामिमानि - 'सुमणे सबओभ वग्गू सुवग्गू' इति ॥ दशमशते पञ्चमोद्देशकः ॥ १०५ ॥ पञ्चमोद्देशके देववक्तव्यतोक्ता, षष्ठे तु देवाश्रयविशेषं प्रतिपादयन्नाह कहि णं भंते ! सक्क्स्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता ?, गोयमा ! जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पञ्चयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए एवं जहा रायप्पसेणइज्जे जाव पंच वडेंसगा पन्नत्ता, तंजहा - असोगवडेंसए | जाव मज्झे सोहम्मवडेंसए, से णं सोहम्मवडेंसए महाविमाणे अद्धतेरस य जोयणसयसहस्साई आयाम| विक्खंभेणं, एवं जह सूरियाभे तहेव माणं तहेव उववाओ । सक्करस य अभिसेओ तहेव जह सूरिया| भस्स ॥ १ ॥ अलंकारअचणिया तहेव जाव आयरक्खत्ति, दो सागरोवमाइंठिती। सक्के णं भंते ! देविंदे देव| राया केमहिडीए जाव केमहसोक्खे ?, गोयमा ! महिडीए जाव महसोक्खे, से णं तत्थ बत्तीसार विमाणावाससयसहस्साणं जाव विहरति एवं महहिए जाव महासोक्खे सके देविंदे देवराया । सेवं भंते ! सेवं भंतेति ॥ ( सूत्रं ४०७ ) ।। १०-६ ॥ 'कहि ण 'मित्यादि, 'एवं जहा रायप्पसेणइज्जे' इत्यादिकरणादेवं दृश्यं - 'पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमि| भागाओ उहं चंदमसूरियगहगणन क्खत्ततारारूवाणं बहूई जोयणाई बहूई जोयणसयाई एवं सहस्साई एवं सय सहस्साइं बहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ उडुं दूरं वीइवइत्ता एत्थ णं सोहम्मे नामं कप्पे Jain Education International For Personal & Private Use Only १० शतके ६ उद्देशः सुधर्मासभा सू ४०७ ॥५०६॥ www.jainelibrary.org
SR No.600225
Book TitleBhagwati sutram Part 02
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages664
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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