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प्रज्ञप्तिः
१० शतके | उद्देश २ वीचिमतः क्रिया सू ३९६
व्याख्या
रायगिहे जाव एवं वयासी-संवुडस्सणं भंते! अणगारस्स वीयीपंथे ठिचा पुरओ रूवाई निज्झायमाणस्स अभयदेवी
मग्गओ रूवाई अवयक्खमाणस्स पासओ रूवाई अवलोएमाणस्स उई रूवाइं ओलोएमाणस्स अहे रूवाई या वृत्तिः२/
आलोएमाणस्स तस्स णं भंते ! किं ईरियावहिया किरिया कजइ संपराइया किरिया कज्जइ ?, गोयमा !
संवुडस्स णं अणगारस्स वीयीपंथे ठिच्चा जाव तस्स णं णो ईरियांवहिया किरिया कजइ संपराइया किरिया ॥४९५॥ कजइ, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ संवड० जाव संपराइया किरिया कजइ ?, गोयमा ! जस्स णं कोहमाण
मायालोभा एवं जहा सत्तमसए पढमोद्देसए जाव से णं उस्सुत्तमेव रीयति, से तेणटेणं जाव संपराइया किरिया कन्जइ । संवुडस्स णं भंते ! अणगारस्स अवीयीपंथे ठिच्चा पुरओ रुवाइं निज्झायमाणस्स जाव तस्स णं भंते ! किं ईरियावहिया किरिया कजइ, पुच्छा, गोयमा! संवुड० जाव तस्स णं ईरियावहिया किरिया कजइ नो संपराइया किरिया कज्जइ, से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ जहा सत्तमे सए पढमोद्देसए जाव से णं अहामुत्तमेव रीयति से तेणढेणं जाव नो संपराइया किरिया कजइ ॥ (सूत्रं० ३९६) __ 'रायगिहे'इत्यादि, तत्र 'संवुडस्स'त्ति संवृतस्य सामान्येन प्राणातिपाताद्याश्रवद्वारसंवरोपेतस्य 'वीईपंथे ठिच्चे'ति ४|| वीचिशब्दः सम्प्रयोगे, स च सम्प्रयोगोईयोर्भवति, ततश्चेह कषायाणां जीवस्य च सम्बन्धो वीचिशब्दवाच्यः ततश्च ||
वीचिमतः कषायवतो मतुप्प्रत्ययस्य षष्ठ्याश्च लोपदर्शनात् , अथवा 'विचिर पृथग्भावे'इति वचनाद् विविच्य-पृथग्भूय यथाऽऽख्यातसंयमात् कषायोदयमनपवार्येत्यर्थः, अथवा विचिन्त्य रागादिविकल्पादित्यर्थः, अथवा विरूपा कृतिः
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