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________________ व्याख्या- णए'त्ति तद्गामिनां तत्स्थानानां चाल्पत्वादिति ॥ अथ नारकादिप्रवेशनकस्यैवाल्पत्वादि निरूपयन्नाह-एयस्स ण'मि- ९ शतके प्रज्ञप्तिः | त्यादि, तत्र सर्वस्तोक मनुष्यप्रवेशनक, मनुष्यक्षेत्र एव तस्य भावात् , तस्य च स्तोकत्वात् , नैरयिकप्रवेशनकं त्वसङ्ख्या-8 उद्देशः ३२ अभयदेवीतगुणं, तद्गामिनामसङ्ख्यातगुणत्वात् , एवमुत्तरत्रापीति ॥ अनन्तरं प्रवेशनकमुक्तं तत्पुनरुत्पादोद्वर्तनारूपमिति नारका प्रवेशनाल्पया वृत्तिः२ ॥४॥ बहुत्वं दीनामुत्पादमुद्वर्तनां च सान्तरनिरन्तरतया निरूपयन्नाह सू ३७८ ॥४५३॥ | संतरं भंते ! नेरइया उववजंति निरंतरं नेरड्या उववजंति संतरं असुरकुमारा उववजंति निरंतरं असुर-8 सान्तराद्यु मा कुमारा जाव संतरं वेमाणिया उववजंति निरंतरं वेमाणिया उववजंति संतरं नेरइया उववहति निरंतरं नेर- त्पादादि तिया उववटुंति जाव संतरं वाणमंतरा उववति निरंतरं वाणमंतरा उववदृति संतरं जोइसिया चयंति सू ३७८ निरंतरं जोइसिया चयंति संतरं वेमाणिया चयंति निरंतरं वेमाणिया चयंति, गंगेया ! संतरंपि नेर-8 तिया उववजंति निरंतरं नेरतिया उववजंति जाव संतरंपि थणियकुमारा उववजंति निरंतरं थणि-& यकुमारा उववजंति नो संतरंपि पुढविकाइया उववजंति निरंतरं पुढविक्काइया उववजंति एवं जाव वणस्स-|| इकाइया सेसा जहा नेरइया जाव संतरंपि वेमाणिया उववजंति निरंतरंपि वेमाणिया उववज्जेति, संतरंपि नेरइया उववर्द्दति निरंतरंपि नेरइया उववहृति एवं जाव थणियकुमारा नो संतरं पुढविक्काइया उववति ॥४५३॥ निरंतरं पुढविक्काइया उववदृति एवं जाव वणस्सइकाइया सेसा जहा नेरइया, नवरं जोइसियवेमाणिया चयंति अभिलावो, जाव संतरपि वेमाणिया चयंति निरंतरं वेमाणिया चयंति ॥ संतो भंते ! नेरतिया उव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600225
Book TitleBhagwati sutram Part 02
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages664
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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