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________________ व्याख्या- प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः२ पंक० तमाए य अहेसत्तमाए य होज्जा ३ अहवा रयण सक्कर वालुय० धूमप्पभाए तमाए अहेसत्तमाए होज्जा ४ अहवा रयण सकर० पंक० जाव अहेसत्तमाए य होजा ५ अहवा रयण वालुय. जाव अहेस- त्तमाए होज्जा ६ अहवा रयणप्पभाए य सकर० जाव अहेसत्तमाए य होजा ७॥ ९ शतके उद्देशः ३२ एकादिजीवप्रवेशाधि. सू ३७३ ॥४५०॥ mmmmm १५६७ द्विकयोगे पडङ्गाः एवं २० पञ्चकसंयोगे | पञ्चदश भङ्गाः १२३५६/विकयोगे पत्रा१२३५७ दशभकाः १२३५६७ चतुष्कसंयोगे ६०|विंशतिभङ्गाः ६. 06 एवं १५ षड्योगे भङ्गकाः १२३४५६ . एयस्स णं भंते! रयणप्पभापुढविनेरइयप वेसणगस्स सकरप्पभापुढवि. जाव अहेrrrrrror सत्तमापुढविनेरइयपवेसणगस्स य कयरे २ जाव विसेसाहिया वा?, गंगेया! सत्वत्थोवे अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसणए तमापुढविनेरइयपवेसणए असंखेजगुणे एवं पडिलोमगं जाव रयणप्पभापुढविनेरहयपवेसणए असंखेजगुणे (सूत्रं ३७३)॥ 'उक्कोसेण'मित्यादि, उत्कर्षा-उत्कृष्टपदिनो येनोत्कर्षत उत्पद्यन्ते ते सधेवित्तिये उत्कृष्टपदिनस्ते सर्वेऽपि रत्नप्रभायां ॥४५०॥ Jain Education International www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.600225
Book TitleBhagwati sutram Part 02
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages664
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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