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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥४३९॥ संतरंपि बेइंदिया उच्चति निरंतरंपि बेइंदिया उबइंति, एवं जाव वाणमंतरा, संतरं भंते! जोइसिया चयंति ? पुच्छा, गंगेया! संतरंपि जोइसिया चयंति निरंतरंपि जोइसिया चयंति, एवं जाव वेमाणियावि (सूत्रं ३७२ ) ॥ 'ते 'मित्यादि, 'संतरं 'ति समयादिकालापेक्षया सविच्छेदं तत्र चैकेन्द्रियाणामनुसमयमुत्पादात् निरन्तरत्वमन्येषां तूत्पादे विरहस्यापि भावात् सान्तरत्वं निरन्तरत्वं च वाच्यमिति ॥ उत्पन्नानां च सतामुद्वर्त्तना भवतीत्यतस्तां निरूपय | शाह - 'संतरं भंते! नेरइया उबवती'त्यादि ॥ उद्वृत्तानां च केषाश्चिद्गत्यन्तरे प्रवेशनं भवतीत्यतस्तन्निरूपणायाह - कइविहे णं भंते । पवेसणए पन्नन्ते १, गंगेया ! चउद्दिहे पवेसणए पन्नत्ते तंजहा- नेरइयपवेसणए तिरियजोणियपवेसणए मणुस्सपवेसणए देवपवेसणए । नेरइयपवेसणए णं भंते ! कह विहे पन्नते १, गंगेया ! सत्तविहे पन्नत्ते, तंजा - रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढविनेरहयपवेसणए ॥ एगे णं भंते! नेरइए नेरइयपवेसणएणं पविसणमाणे किं रयणप्पभाए होज्जा सक्करप्पभाए होजा जाव अहेसन्तमाए होज्जा ?, गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव आहेसत्तमाए वा होज्जा । दो भंते ! नेरइया नेरइ| यपवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होजा. जाव आहेसत्तमाए होज्जा ?, गंगेया ! रयणप्पभाए वा होजा जाव असत्तमाए वा होजा, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए होज्जा अहवा एगे रयण भाए एगे वालुयप्पभाए होजा जाव एगे रयणप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे सक्कर प्पभाए एगे वालुयप्पभाए होजा जाव अहवा एगे सकरप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा, अहवा एगे वालुयप्पभाए Jain Education International For Personal & Private Use Only ९ शतके उद्देशः ३२ सान्तराद्युत्पादोद्वर्त्तने सू ३७१३७२ ॥४३९॥ www.jainelibrary.org
SR No.600225
Book TitleBhagwati sutram Part 02
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages664
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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