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व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवी या वृत्तिः१
॥३०॥
नरकादावुत्पत्तिरुक्ता, सा चाममाणस जाव आउत्तं तुयमाणामावहिया किरिया कजइ
सोऽपि वसादिः कुणपस्तदाहाराः। ते गंति ये तदानीं क्षीणावशेषाश्चतुष्पदाः केचन भविष्यन्ति 'अच्छ'त्ति ऋक्षाःoll७ शतके |'तरच्छ'त्ति व्याघ्रविशेषाः 'परस्सर'त्ति शरभाः, 'ढंक'त्ति काकाः 'महुग'त्ति मद्गवो-जलवायसाः 'सिहि'त्ति मयूराः॥ उद्देशः ७ सप्तमशते षष्ठः॥७-६॥
संवृतक्रियाः २८९ काम
भोगः २९० अनन्तरोद्देशके नरकादावुत्पत्तिरुक्ता, सा चासंवृतानाम् , अथैतद्विपर्ययभूतस्य संवृतस्य यद्भवति तत्सप्तमोद्देशके आहसंवुडस्स णं भंते ! अणगारस्स आउत्तं गच्छमाणस्स जाव आउत्तं तुयदृमाणस्स आउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा निक्खिवमाणस्स वा तस्स णं भंते ! किं ईरियावहिया किरिया कज्जइ संपराइया किरिया कजइ ?, गोयमा ! संवुडस्स णं अणगारस्स जाव तस्स णं ईरियावहिया किरिया कज्जइ णो संपराइया किरिया कजइत्ति । से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-संवुडस्स णं जाव संपराइया किरिया कज्जइ ?, गोयमा ! जस्स णं कोहमाणमायालोभा वोच्छिन्ना भवंति तस्स णं ईरियावहिया किरिया कजइ, तहेव जाव उस्सुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कजइ, से णं अहासुत्तमेव रीयइ, से तेण?णं गोयमा ! जाव नो संपराईया किरिया कज्जइ ॥ (सूत्रं २८९)॥ रुवी भंते ! कामा अरूवी कामा ?, गोयमा! स्वी ॥३०॥ कामा समणाउसो ! नो अरूवी कामा । सचित्ता भंते ! कामा अचित्ता कामा ?, गोयमा ! सचित्तावि कामा अचित्तावि कामा। जीवा भंते ! कामा अजीवा कामा ?, गोयमा ! जीवावि कामा अजीवावि
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