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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवी या वृत्तिः१] ७ शतके उद्देशः २ मूलोत्तरभेदेषु दण्डका अल्पबहुत्वचित्ताच ॥२९७॥ सू २७३ सप्त देशोत्तरगुणा इत्युक्तम् , अस्याश्चैतेषु पाठो देशोत्तरगुणधारिणाऽपीयमन्ते विधातव्येत्यस्यार्थस्य ख्यापनार्थ इति ॥ | अथोक्तभेदेन प्रत्याख्यानेन तद्विपर्ययेण च जीवादिपदानि विशेषयन्नाह जीवा णं भंते ! किं मूलगुणपञ्चक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चक्खाणी,गोयमा ! जीवा मूलगुणपञ्चक्खाणीवि उत्तरगुणपञ्चक्खाणीवि अपचक्खाणीवि । नेरइयाणं भंते ! किंमूलणगुणपञ्चक्खाणी० पुच्छा, गोयमा! नेरइया नो मूलगुणपच्चक्खाणी नो उत्तरगुणपच्चखाणी अपचक्खाणी, एवं जाव चउरिदिया, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य जहा जीवा, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेरइया ॥ एएसि णं भंते ! मूलगुणपचक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी अपच्चक्खाणी य कयरे २ हिंतो जाव विसेसाहिया वा?, गोयमा ! सवत्थोवा जीवा मूलगुणपचक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी असंखेजगुणा अपचक्खाणी अनंतगुणा । एएसि णं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा ! सवत्थोवा जीवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मूलगुणपञ्चक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी असंखेजगुणा अपञ्चक्खाणी असंखिजगुणा । एएसि णं भंते ! मणुस्साणं मूलगुणपञ्चक्खाणीणं० पुच्छा,गोयमा सवत्थोवा मणुस्सा मूलगुणपचक्खाणी उत्तरगुणपच्चक्खाणी संखेजगुणा अपञ्चक्खाणी असंखेज्जगुणा। जीवा गंभंते!किं सबमूलगुणपञ्चक्खाणी देसमूलगुणपञ्चक्खाणी अपचक्खाणी, गोयमा ! जीवा सबमूलगुणपच्चक्खाणी देसमूलगुणपच्चक्खाणी अपचक्खाणीवि।नेरइयाणं पुच्छा, गोयमा ! |नेरइया नो सबमूलगुणपचक्खाणी नो देसमूलगुणपञ्चक्खाणी अपच्चक्खाणी, एवं जाव चारिदिया। पंचिंदि ॥२९७॥ Jain Education onal For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600224
Book TitleBhagwati sutram Part 01
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1918
Total Pages656
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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