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________________ SARASHT व्याख्या च्छन्ति, एवं संसारं आउलीकरेंति एवं परित्तीकरेंति दीहीकरेंति हस्सीकरेंति एवं अणुपरियति एवं वीइ- १ शतके प्रज्ञप्तिः |वयंति-पसत्था चत्तारि अप्पसत्था चत्तारि ॥ (सू०७२)॥ उद्देशः ९ अभयदेवी- 'गरुयत्तंति 'गुरुकत्वम्' अशुभकर्मोपचयरूपमधस्ताद्गमनहेतुभूतं 'लघुकत्वं' गौरवविपरीतम् , एवम् 'आउलीकरिंति' जीवानां या वृत्तिः१त्ति , इहैवंशब्दः पूर्वोक्ताभिलापसंसूचनार्थः, स चैवम्-'कहन्नं भंते ! जीवा संसारं आउलीकरेंति ?, गोयमा! पाणाइवा गुर्वाकुला नुपरिवर्त॥९५॥ | एण'मित्यादि, एवमुत्तरत्रापि, तत्र 'आउलीकरेंति' प्रचुरीकुर्वन्ति कर्मभिरित्यर्थः, 'परित्तीकरेंति'त्ति स्तोकं कुर्वन्ति नव्यतित्रकर्मभिरेव, 'दीहीकरेंति'त्ति दीर्घ प्रचुरकालमित्यर्थः, 'हस्सीकरेंतित्ति अल्पकालमित्यर्थः 'अणुपरियदृति'त्ति पौन: जनेतराणि पुन्येन भ्रमन्तीत्यर्थः, 'वीइवयंति'त्ति व्यतिव्रजन्ति व्यतिक्रामन्तीत्यर्थः, 'पसत्था चत्तारित्ति लघुत्वपरीतत्वहस्वत्वव्यतिव्रजनदण्डकाःप्रशस्ताः मोक्षाङ्गत्वात् , 'अप्पसत्था चत्तारि'त्ति गुरुत्वाकुलत्वदीर्घत्वानुपरिवर्तनदण्डका अप्रशस्ताः अमोक्षाङ्गत्वादिति ॥ गुरुत्वलघुत्वाधिकारादिदमाह| सत्तमे णं भंते ओवासंतरे किं गुरुए लहुए गुरुयलहुए अगुरुयलहुए ?, गोयमा ! नो गुरुए नो लहुए नो . गुरुयलहुए अगुरुयलहुए। सत्तमे ण भंते ! तणुवाए किं गुरुए लहए गुरुयलहुए अगुरुयलहुए ?, गोयमा ! नो गुरुए नो लहुए गुरुयलहुए नो अगुरुयलहुए। एवं सत्तमे घणवाए सत्तमे घणोदही सत्तमा पुढवी, उवासंतराई सव्वाई जहा सत्तमे ओवासंतरे, (सेसा) जहातणुवाए,एवं-ओवासवायघणउहि पुढवी दीवा यसागरावासा। |नेरइयाणं भंते ! किं गुरुया जाव अगुरुलहुया ?, गोयमा ! नो गुरुयानो लहया गुरुयलहयावि अगुरुलहुयावि, सू ७२ EARCRAOCALCRc ॥ ९५॥ RA Jain Education nal For Personal & Private Use Only wwwjainelibrary.org
SR No.600224
Book TitleBhagwati sutram Part 01
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1918
Total Pages656
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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