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|मारेइ से पुरिसवेरेणं पुढे, से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव से पुरिसवेरेणं पुढे ?, से नूर्ण गोयमा ! कज्जमाणे व्याख्या
|१ शतके IX कडे संधिजमाणे संधिए निव्वत्तिजमाणे निव्वत्तिए निसिरिजमाणे निसिद्वेत्ति वत्तव्वं सिया ?, हंता भ
उद्देशः८ अभयदेवी- गवं ! कजमाणे कडे जाव निसिद्वेत्ति वत्तव्वं सिया, से तेणद्वेणं गोयमा ! जे मियं मारेइ से मियवेरेणं पुढे, मृगवधादौ यावृत्तिः१ जे पुरिसं मारेइ से पुरिसवेरेणं पुढे ॥ अंतो छण्हं मासाणं मरइ काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे, बाहिं क्रियाः
छण्हं मासाणं मरइ काइयाए जाव पारियावणियाए चउहिं किरियाहिं पुढे (सू०६८)। पुरिसे गं सू ६४-६९
भंते ! पुरिसं सत्तीए समभिधंसेज्जा सयपाणिणा वा से असिणा सीसं छिंदेजा सओणं भंते ! से पुरिसे हा कतिकिरिए ?, गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे तं पुरिसं सत्तीए अभिसंधेइ सयपाणिणा वा से असिणा सीसं| छिंद तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणि जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहि किरियाहिं पुढे, आ
सन्नवहएण य अणवकंखवत्तिएणं पुरिसवेरेणं पुढे ॥ (सू०६९) ___ 'कच्छंसि वत्ति 'कच्छे नदीजलपरिवेष्टिते वृक्षादिमति प्रदेशे 'दहंसि वत्ति इदे प्रतीते 'उदगंसि वत्ति ४ उदके-जलाश्रयमाने 'दवियंसि वत्ति 'द्रविके' तृणादिद्रव्यसमुदाये 'वलयंसि वत्ति 'वलये' वृत्ताकारनद्या
युदककुटिलगतियुक्तप्रदेशे 'नूमंसि वत्ति 'नूमें' अवतमसे 'गहणंसि वत्ति 'गहने' वृक्षवल्लीलतावितानवीरुत्स-IP॥९२॥ मदाये 'गहणविदुग्गंसि वत्ति 'गहन विदुर्गे' पर्वतैकदेशावस्थितवृक्षवल्यादिसमुदाये 'पव्वयंसि वत्ति पर्वते 'पव्वयविदुग्गंसि वत्ति पर्वतसमुदाये 'वर्णसि वत्ति 'वने' एकजातीयवृक्षसमुदाये 'वणविदुम्गंसि बत्ति नाना
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