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________________ तीयमणागयभावं जमत्थिकायाण नत्थि अत्थित्तं । तेन र केवलएK नत्थी व्वत्थिकायत्तं ॥१४३७॥ कामं भवियसुराइसु भावो सो चेव जत्थ वहति । एस्सो न ताव जायइ तेन र ते दव्वदेवुत्ति ॥१४३८॥ दुहओऽणंतररहिया जइ एवं तो भवा अणंतगुणा । एगस्स एगकाले भवा न जुजंति उ अणेगा ॥१४३९ ॥ दुहओऽणंतरभवियं जह चिट्ठइ आउअं तु जंबई । हुजियरेसुवि जइ तं व्वभवा हुन्ज तो तेऽवि ॥१४४०॥ संझासु दोसु सूरो अदिस्समाणोऽवि पप्प समईयं । जह ओभासह खित्तं तहेव एयंपि नायव्वं ॥१४४१॥ माउयपयंति नेयं नवरं अन्नोवि जो पयसमूहो । सो पयकाओ भन्नइ जे एगपए बहु अत्था २३१॥ (भा०) संगहकाओऽणेगावि जत्थ एगवयण धिप्पंति । जह सालिगामसेणा जाओ वसही (ति) निविट्ठत्ति ॥१४४२॥ पज्जवकाओ पुण हुंति पजवा जत्थ पिंडिया बहवे । परमाणुंमिविकमिवि जह वन्नाई अणंतगुणा ॥१४४३॥ || एगो काओ दुहा जाओ एगो चिट्ठइ एगो मारिओ।जीवंतो अमएण मारिओतं लवमाणव! केण हेउणा॥१४४४॥ दुगतिगचउरो पंच व भावा बहुआ व जत्थ वदति । सो होइ भावकाओ जीवमजीवे विभासा उ॥१४४५॥ काए सरीर देहे बुंदी य चय उवचए य संघाए । उस्सय समुस्सए वा कलेवरे भत्थ तण पाणू ॥१४४६॥ तत्र 'कायस्स उ निक्खेवो' कायस्य तु निक्षेपः कार्य इति 'बारसउत्ति द्वादशप्रकारः। 'छक्कओ य उस्सग्गे' षट्रक- श्चोत्सर्गविषयः षट्प्रकार इत्यर्थः, पश्चार्द्ध निगदसिद्धं तत्र कायनिक्षेपप्रतिपादनायाह-'नाम ठवणा' नामकायः स्थापनाकायः शरीरकायः गतिकायः निकायकायः अस्तिकायः द्रव्यकायश्च मातृकायः संग्रहकायः पर्यायकायः भार Jain Education anal For Personal & Private Use Only nelibrary.org
SR No.600223
Book TitleAavashyaksutram Part 04
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1917
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size17 MB
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