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________________ % % आवश्यक तापसिद्धे 'खिंसई' निंदइ जच्चाईहिं, अबहुस्सुया वा एएतहावि अम्हेवि एएसिं तु सगासे किंपि कहंचि अवहारियंति मंदबुद्धीए' ४ प्रतिक्रमहारिभ- बालेत्ति भणिय होइ १०,'तेसिमेव'य आयरिओवज्झायाणं परमबंधूणं परमोवगारीणं णाणीण'न्ति गुणोवलक्खणं गुणेहिं पभा-IYणाध्य० द्रीया विए पुणो तेसिं चेव कजे समुप्पण्णे 'समं न पडितप्पई' आहारोवगरणाईहिं णोवजुजेइ ११, 'पुणो पुणो'त्ति असई 'अहिगरणं' त्रिंशन्मोहजोतिस्साइ 'उप्पाए' कहेइ निवजत्ताइ 'तित्थभेयए' णाणाइमग्गविराहणत्थंति भणियं होइ १२, जाणं आहंमिए जोए-वसी नीयस्था॥६६२॥ करणाइलक्खणे पउंजइ 'पुणो पुणो' असइत्ति१३, 'कामे' इच्छामयणभेयभिण्णे 'वमेत्ता' चइऊण, पधजमन्भुवगम्म 'पत्थेइ' नानि अभिलसइ इहभविए-माणुस्से चेव अण्णभविए-दिवे १४, 'अभिक्खणं २' पुणो २ बहुस्सुएऽहंति जो भासए, बहुस्सुए (बहुस्सुएण) अण्णेण वा पुट्ठोस तुम बहुस्सुओ?,आमंति भणइ तुहिको वा अच्छइ, साहवो चेव बहुस्सुएत्ति भणति १५, अतवस्सी तवस्सित्ति विभासा १६, 'जायतेएण' अग्गिणा बहुजणं घरे छोढुं 'अंतो धूमेण' अभितरे धूमं काऊण हिंसइ १७, 'अकिच्चं पाणाइवायाइ अप्पणा काउं कयमेएण भासइ-अण्णस्स उत्थोभं देइ १८, 'नियडुवहिपणिहीए पलिउंचई' नियडीअण्णहाकरणलक्खणा माया उवहीतं करेइ जेणतं पच्छाइजइ अण्णहाकयं पणिही एवंभूत एव (च) रइ, अनेन प्रकारेण 'पलिउचई'वंचेइत्ति भणियं होइ १९, साइजोगजुत्ते य-अशुभमनोयोगयुक्तश्च २०, 'बेति' भणइ सबं मुसं वयइ सभाए २१, ॥१२॥ |'अक्खीणझंझए सया' अक्षीणकलह इत्यर्थः, झंझा-कलहो २२, 'अद्धाणंमि' पंथे 'पवेसेत्ता' नेऊण विसंभेण जो धणंसुवण्णाई हरइ पाणिणं-अच्छिदइ २३, जीवाणं, विसंभेत्ता-उवाएण केणइ अतुलं पीई काऊण पुणो दारे-कलत्ते 'तस्सेव' जेण समं पीई कया तत्थ लुब्भइ २४, 'अभिक्खणं' पुणो २ अकुमारे संते कुमारेऽहंति भासइ २५, एवमब उत्थोभ देइ १८, 'नियड %95 वहीत करेइ जेण तं पच्छा 5 'पलिउंचई'वंचेइति कलह इत्यर्थः, गजाते य-अशुभमनोयोगयुत पणिही एवंभूत एव %E
SR No.600222
Book TitleAavashyaksutram Part 03
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1917
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size10 MB
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