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________________ आवश्यक हारिभद्रीयवृत्तिः विभागः१ ॥१६॥ निगदसिद्धाः ॥ नामानि प्राक्प्रतिपादितान्येव, साम्प्रतं चक्रवर्तिगोत्रप्रतिपादनायाहकासवगुत्ता सव्वे चउदसरयणाहिवा समक्खाया। देविंदवंदिएहिं जिणेहि जिअरागदोसेहिं ॥ ३९४ ॥ सूत्रसिद्धा ॥ साम्प्रतं चक्रवर्त्यायुष्कप्रतिपादनायाह चउरासीई १ बावत्तरी अ पुवाण सयसहस्साई २। पंच ३ य तिणि अ ४ एगं च ५ सयसहस्सा उ वासाणं ॥ ३९५ ॥ पंचाणउइ सहस्सा ६ चउरासीई अ ७ अट्ठमे सही ८। तीसा ९ य दस १० य तिणि ११ अ अपच्छिमे सत्तवाससया १२॥ ३९६ ॥ गाथाद्वयं पठितसिद्धम् ॥ इदानीं चक्रवर्तिनां पुरप्रतिपादनायाह जम्मण विणीअ १ उज्झा २ सावत्थी ३ पंच हथिणपुरंमि ८। वाणारसि ९ कंपिल्ले १० रायगिहे ११ चेव कंपिल्ले १२ ॥ ३९७ ॥ निगदसिद्धा एव ॥ साम्प्रतं चक्रवर्त्तिमातृप्रतिपादनायाह सुमंगला १ जसवई २ भद्दा ३ सहदेवि ४ अइर ५ सिरि ६ देवी ७। तारा ८ जाला ९ मेरा १० य वप्पगा ११ तह य चूलणी अ॥ ३९८ ॥ निगदसिद्धा ॥ साम्प्रतं चक्रवर्तिपितृप्रतिपादनायाह ॥१६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600220
Book TitleAavashyaksutram Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1916
Total Pages514
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size10 MB
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